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अक्तूबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

चंद्रगुप्त मौर्य को एंड्रो - कोट्टस ( Andro- Cottus ) क्यों कहा जाता है?

 मौर्यों का जमाना था। भारत और यूनान के बीच आवाजाही थी। तब ग्रीक और प्राकृत शब्दों का मेलजोल भी था। ग्रीक में एक शब्द " एंड्रो - दमस " ( Andro - Damas ) का प्रचलन है। एंड्रो - दमस में दो शब्दों का मेलजोल है। एंड्रो ग्रीक का और दमस प्राकृत का शब्द है। ग्रीक में एंड्रो का अर्थ पुरुष तथा प्राकृत में दमस का अर्थ जीतने वाला होता है। एंड्रो - दमस का अर्थ " जीतने वाला पुरुष " हुआ। चंद्रगुप्त मौर्य को एंड्रो - कोट्टस ( Andro- Cottus ) क्यों कहा जाता है? एंड्रो - कोट्टस में दो शब्दों का मेलजोल है। एंड्रो ग्रीक का और कोट्टस प्राकृत का शब्द है। ग्रीक में एंड्रो का अर्थ पुरुष तथा प्राकृत में कोट्टस का अर्थ किले वाला होता है। एंड्रो - कोट्टस का अर्थ " किले वाला पुरुष " हुआ। चंद्रगुप्त मौर्य को यूनानियों ने " किला - पुरुष " यूँ ही नहीं कहा है। पाटलिपुत्र की किलेबंदी ऐसी कि पक्षी भी पर नहीं मार सके। किलेबंदी को देखकर मेगस्थनीज चकित थे। मेगस्थनीज ने लिखा कि पाटलिपुत्र की किलेबंदी ऐसी कि नगर के चारों ओर मोटी लकड़ी की दीवार थी। दीवार के बीच - बीच में मोर्चे बने थे

शूद्रों का सच्चा इतिहास जाने

 शूद्रों का सच्चा इतिहास,,,,,,,, आज भारत के बाहर निकलों तो सारी दुनिया को भारत का इतिहास पता है। अगर केाई भारतीय विदेशियों को अपना इतिहास बताता है तो सभी विदेशी बहुत हंसते है, मजाक बनाते है। सारी दुनिया को भारत का इतिहास पता है, फिर भी भारत के 95 प्रतिशत लोगो को अंधेरे में रखा गया है। क्योकि अगर भारत का सच्चा इतिहास सामने आ गया तो ब्राम्हणों, राजपूतों और वैश्यों द्वारा समाज के सभी वर्गो पर किये गए अत्याचार सामने आ जायेंगे, और देश के लोग हिन्दू नाम के तथाकथित धर्म की सच्चाई जानकर हिन्दू धर्म को मानने से इंकार कर देंगे। कोई भी भारतवासी हिन्दू धर्म को नहीं मानेगा। ब्राम्हणों का समाज में जो वर्चस्व है, वो समाप्त हो जायेगा। बहुत से लोग यह नहीं जानते कि भारत में कभी देवता थे ही नहीं, और न ही असुर थे। ये सब कोरा झूठ है, जिसको ब्राम्हणो ने अपने अपने फायदे के लिए लिखा था, और आज ब्राम्हण वर्ग इन सब बातों के द्वारा भारत के समाज के हर वर्ग को बेवकुफ़ बना रहा है। अगर आम आदमी अपने दिमाग पर जोर डाले और सोचे, तो सारी सच्चाई सामने आ जाती है। ब्राम्हण, राजपूत और वैश्य ईसा से 3200 साल पहले में भारत मंे आय

कहीं बुद्ध पुत्र राहुल तो हनुमान नहीं ?

 #बुद्ध_पुत्र_राहुल एक महान धम्म धम्म प्रचारक थे। वे अपने करुणामय स्वभाव और त्यागी वृत्ति से अर्हंत पद पर पोहच गए। संघ के अनुशासन की जिम्मेवारी आदरणीय भंते राहुल पर थी। भिखखु संघ में सम्मलित होने वाले श्रमनेरो को प्रशिक्षित करने की मुख्य जिम्मवारी भंते राहुल की थी। महायानी बुद्धिज़्म के अनुसार, जापान में #sonja सोंजा याने, #अर्हत_पद तक पोहचे हुवे भंते। #sonja यह #संत शब्द से मिलता जुलता शब्द है जापान में 16 अर्हत songa को पूजनीय मानते है, उसमेसे ही एक  #Ragora_Sonja (रेगोरा सोंग्ज़ा) एक है। यह Ragora Sonja यह कोई और नहीं बल्कि, बुद्ध पुत्र राहुल है। जापानी वर्णमाला में ला के बदले रा यह वर्ण है। ब्राह्मणी साहित्य यह बुद्धोत्तर साहित्य है इसमें कोई संदेह नही, रामायण के सारे पात्र यह बुद्ध जातक और बुद्ध इतिहास से प्रेरित है। हनुमान यह भी एक ऐसा ही character है। हनुमान की मूर्ति जिसके सीने में राम की प्रतिमा होती है,  मूर्ति बुद्ध पुत्र भंते राहुल की मूर्ति की नकल है। इतना ही नही, हनुमान चालीसा भी बुद्ध के जयमंगल अठ्ठ गाथा से चुराई गई है या फिर उससेही प्रेरित है। जपान में भंते राहुल(Ragora S

दीपावली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है जानिए

 दीपावली एक बौद्ध उत्सव है। लोकपहात्ती ग्रंथ में बताया गया है कि, बुद्ध के सम्मान मे सम्राट अशोक ने 84000 स्तुप बनवाये थे और उनके पूर्ण होने पर दीप जलाकर उत्सव किया था। उस उत्सव में अवरोध डालने के लिए मारा ने हवा और पानी से आक्रमण किया और दीपों को बुझाने की कोशिश की। तब सम्राट अशोक के मुख्य भिक्खु उपगुप्त ने मारा से संघर्ष किया और उसे हराया था।  अशोक के दीपोत्सव का संबंध थायलंड के लोय कोरांग फेस्टिवल से है, जो आक्टोबर-नोव्हेंबर में मनाया जाता है और जिसमें लोग हजारों की संख्या में दीप जलाते हैं। सम्राट अशोक ने नये बदलाव नहीं किए थे बल्कि प्राचीन बौद्ध परंपरा को अधिक विस्तृत किया था| बुद्धत्व प्राप्ति के बाद कपिलवस्तु में बुद्ध का बडे़ उत्साह के साथ वहां के शाक्यों ने स्वागत किया था और दिप जलाकर अपनी खुशी का इजहार कर दिया था| आगे चलकर सम्राट अशोक ने इस दिपोत्सव के दिन 84000 स्तुपों के पुर्ण होने का उत्सव मनाया था| अशोक ने सभी चौरासी हजार स्तुपों पर दिप जलाकर बुद्ध की कपिलवस्तु भेंट को बडे़ पैमाने पर उत्सव के रुप में मनाया था| इस तरह, दिपावली उत्सव वास्तव में तथागत बुद्ध और सम्राट अशोक से

राष्ट्रीय एकता दिवस क्यों मनाया जाता है ?

  31 अक्टूबर को क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय एकता दिवस?          जानें- इसका महत्व और इतिहास :--  31 अक्टूबर को सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती मनाई जाती है।  भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती को चिह्नित करने के लिए 2014 से हर साल 31 अक्टूबर को नेशनल यूनिटी दिवस या राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष स्वतंत्रता सेनानी वल्लभभाई पटेल की 144 वीं जयंती है। सरदार वल्लभ भाई ने 565 रियासतों का विलय कर भारत को एक राष्ट्र बनाया था। यही कारण है कि वल्लभ भाई पटेल की जयंती के मौके पर राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जाता है।     इसका महत्व...........    भारत जैसा देश, जो विविधताओं से भरा है, जहां धर्म, जाति, भाषा, सभ्यता और संस्कृतियां, एकता को बनाए रखना बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए, राष्ट्र की एकता को स्थापित करने के लिए भारत सरकार ने 2014 में राष्ट्रीय एकता दिवस का प्रस्ताव रखा। चूंकि, सरदार पटेल भारत के एकीकरण के लिए जाने जाते हैं, इसलिए राष्ट्रीय एकता दिवस उनकी जयंती (31 अक्टूबर) को हर साल मनाया जाता है।✍️ 🌷इसका इतिहास............ ✍️सरदार वल्लभभाई पटेल की स्मृति में, भारत सरकार ने गु

दीपावली क्यों मनाया जाता है पूरी जानकारी पढ़िए

 इतिहास के पन्नों से... ‘दीपदानोत्सव’,   दीपावली अथवा ‘दीपदानोत्सव’........ ✍️की बुद्ध धम्म में ऐतिहासिकता ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाय तो ‘दीपावली’ को ‘दीपदानोत्सव’ नाम से जाना जाता था और यह वस्तुतः एक बौद्ध पर्व है जिसका प्राचीनतम वर्णन तृतीय शती ईसवी के उत्तर भारतीय बौद्ध ग्रन्थ ‘अशोकावदान’ तथा पांचवीं शती ईस्वी के सिंहली बौद्ध ग्रन्थ ‘महावंस’ में प्राप्त होता है। सांतवी शती में सम्राट हर्षवर्धन ने अपनी नृत्यनाटिका ‘नागानन्द’ में इस पर्व को ‘दीपप्रतिपदोत्सव’ कहा है।  ✍️कालान्तर में इस पर्व का वर्णन पूर्णतः परिवर्तित रूप में ‘पद्म पुराण’ तथा ‘स्कन्द पुराण’ में प्राप्त होता है जो कि सातवीं से बारहवीं शती ईसवी के मध्य की कृतियाँ हैं। तृतीय शती ईसा पूर्व की सिंहली बौध्द ‘अट्ठकथाओं’ पर आधारित ‘महावंस’ पांचवीं शती ईस्वी में भिक्खु महाथेर महानाम द्वारा रचित महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसके अनुसार बुद्धत्व की प्राप्ति के बाद तथागत बुद्ध अपने पिता शुद्धोदन के आग्रह पर पहली बार कार्तिक अमावस्या के दिन कपिलवस्तु पधारे थे। कपिलवस्तु नगरवासी अपने प्रिय राजकुमार, जो अब बुद्धत्व प्राप्त करके ‘सम्यक सम्

मृत्यु भोज निवारण अधिनियम 25 अक्टूबर 1960 को लागू किया गया

 🌷नित्य प्रेरणा-अपनी बात 🙏 📖 इतिहास के पन्नों से... 25 अक्टूबर, 📚✍️   🌷मृत्युभोज निषेध : 25 अक्टूबर... 🌷एक वीभत्स कुरीति..... ✍️मानव विकास के रास्ते में यह गंदगी कैसे पनप गयी, समझ से परे है। जानवर भी साथी के मरने पर मिलकर वियोग प्रकट करते हैं, परन्तु यहाँ भोज करते हैं। घर में खुशी का मौका हो, तो समझ आता है लेकिन किसी व्यक्ति के मरने पर मिठाईयाँ परोसी जायें, खाई जायें, इस शर्मनाक परम्परा को मानवता की किस श्रेणी में रखें। कहीं कहीं यह हैसियत दिखाने का अवसर बन जाता है। आस-पास के कई गाँवों से ट्रेक्टर-ट्रोलियों में गिद्धों की भांति जनता इस घृणित भोज पर टूट पड़ती है। क़स्बों में विभिन्न जातियों की ‘न्यात’ एक साथ इस भोज पर जमा होती है। शिक्षित व्यक्ति भी इस जाहिल कार्य में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। इससे समस्या और विकट हो जाती है, क्योंकि अशिक्षित लोगों के लिए इस कुरीति के पक्ष में तर्क जुटाने वाला पढ़ा-लिखा वकील खड़ा हो जाता है। 🌷मूल परम्परा क्या थी ?.... ✍️लेकिन जब हमने 80-90 वर्ष के बुज़ुर्गों से इस कुरीति के चलन के बारे में पूछा, तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आये। उन्होंने बताया कि उनके

बोधि वृक्ष पेड़ जिस की सुरक्षा में 24 घंटे पुलिस तैनात रहती है

 भारत में कौन सा पेड़ है जिसकी सुरक्षा में 24 घंटे पुलिस तैनात रहती है जानें GK In Hindi आपने किसी व्यक्ति विशेष की सुरक्षा के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या कोई पेड़ इतना VVIP हो सकता है जिसकी सुरक्षा में 24 घंटे गार्ड्स तैनात रहते हों, एक पत्ता भी टूट जाता है तो सुरक्षा में लगा प्रशासन चिंतित हो जाता है। आपने किसी व्यक्ति विशेष की सुरक्षा के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या कोई पेड़ इतना VVIP हो सकता है जिसकी सुरक्षा में 24 घंटे गार्ड्स तैनात रहते हों, एक पत्ता भी टूट जाता है तो सुरक्षा में लगा प्रशासन चिंतित हो जाता है। तमाम तरह की सुरक्षा लिए यह अतिविशिष्ट पेड़ मध्यप्रदेश की राजधानी के पास स्थित सांची में है।: पेड़ की देखरेख पर हर साल खर्च होते हैं 12 से 15 लाख नहीं, कोई नहीं हम आपको बताते हैं। ये पेड़ मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल और विदिशा के बीच सलामतपुर की पहाड़ी पर लगा है और मध्य प्रदेश की सरकार इस पेड़ की देखरेख पर हर साल 12 से 15 लाख रुपए खर्च करती है। यहां तक इस पेड़ की सुरक्षा के लिए हफ्ते के सातों दिन 24 घंटे चार पुलिस वाले तैनात रहते है। सौ एकड़ की पहाड़ी पर लोहे की लगभग 15 फी

चिपको आंदोलन की वास्तविक प्रणेता गौरा देवी क्यों है जानिए

📖 इतिहास के पन्नों से... 25 अक्टूबर,   🌷गौरा देवी,  (25.10.1925-4.7.1991) 🌷चिपको आंदोलन की वास्तविक प्रणेता..... ✍️गौरा देवी का जन्म 25 अक्टूबर 1925 में उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले के लाता गांव में नारायण सिंह जी के घर में हुआ था। गौरा देवी ने कक्षा पांच तक की शिक्षा ग्रहण की थी। मात्र 11 वर्ष की उम्र में इनका विवाह रैंणी गांव के मेहरबान सिंह से हुआ। ✍️26.3.1974 🌷‘चिपको आंदोलन’ 26 मार्च, 1974 को पेड़ों की कटाई रोकने के लिए शुरू हुआ था। यह आंदोलन जब हुआ था जब उत्तराखंड के रैंणी गाँव के जंगल के लगभग ढाई हज़ार पेड़ों को काटने की नीलामी हुई थी, तब गौरा देवी जो उस समय रैणी महिला मंगल दल की अध्यक्षा थी। इनके नेतृत्व मे 21 अन्य महिलाओं के साथ इस नीलामी का विरोध किया गया। परन्तु इनके विरोध के बावजूद सरकार और ठेकेदार के निर्णय में बदलाव नहीं आया। ठेकेदार के आदमी जब पेड़ काटने पहुँचे, तो गौरा देवी और उनके 21 साथियों ने उन लोगों को समझाने की कोशिश की। लेकिन जब उन्होंने पेड़ काटने की जिद की तो महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उन्हें ललकारा और कहा की इन पेड़ों को काटने से पहले हमे काटना होगा। अंत
 क्रांतिकारी जय भीम  सिंधु घाटी की सभ्यता से यह  बात साबित होती है कि  सिंधु घाटी की सभ्यता पुरुष प्रधान सत्ता नहीं थी    सिंधु घाटी की सभ्यता स्त्री प्रधान सत्ता थी स्त्री ही घर की प्रमुख हुआ करती थी मुझे यह बताने की जरूरत नहीं  स्त्री प्रधान  सत्ता के कारण सिंधु घाटी की सभ्यता एक उन्नत सभ्यता थी  आर्यों के भारत पर कब्जा करने  के साथ ही   भारत का परिदृश्य बदल गया  भारत  अचानक पुरुष प्रधान देश बन गया स्त्री दमन सोशण का पर्याय बन गई   जो स्त्री कल तक घर की  प्रधान हुआ करती थी उसकी तक़दीर में पति के साथ सती होना लिख दिया गया  कल तक जिस स्त्री के फैसले परिवार के लिए  मान्य होते थे  उसे स्त्री के तकदीर में देवदासी होना लिख दिया गया बिना उसकी  मर्जी के लोग उसका फैसला करने लगे  सिंधु घाटी की उन्नत सभ्यता यह बताने के लिए काफी है कि स्त्रियों का   बौद्धिक स्तर  कितना ऊंचा और कितना बेहतर रहा होगा   स्त्रियों को दिमाग से विकलांग बनाने के लिए और उनका बौद्धिक स्तर नीचे गिराने के लिए उनके ऊपर पतिव्रता का तमगा लगाया गया और बाल विवाह जैसे कानून बनाए गए  जो औरतें श्रम और मेहनत का पर्याय हुआ करती थी उन

सम्राट अशोक विजयादशमी का नाम दशहरा कैसे पड़ा?

 सम्राट अशोक विजयादशमी का नाम दशहरा कैसे पड़ा?        10+ हरा = 10 को पराजित किया अंतिम बौद्ध सम्राट बृहद्रथ मौर्य का ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र शुंग  ( राम) ने   मौर्य वंश के 10 वें बौद्ध सम्राट बृहद्रथ मौर्य का धोखे से कत्ल कर दिया गया   और उसने खुद को राम के नाम से प्रचारित किया और मौर्य वंश के 10 राजाओं को रावण बताकर आज तक पुतला जलाते गए नमो बुद्धाय बी.एल. बौद्ध                                                                

क्या सच में मुस्लिम हमारे दुश्मन हैं

 मुहम्मद गोरी से लेकर  बहादुर शाह जफर तक करीब साढ़े पांच सौ वर्षों तक के मुगलों के शासन काल में पण्डित, पुजारी, ऋषि मुनि, ब्राह्मण, संस्कृत के विद्वान, संस्कृत के कबियों को मुगलों से कोई परेशानी या दिक्कत नहीं रही। तभी तो इन लोगों ने मुगलों का कोई प्रतिकार नहीं किया और न ही मुगलों के बिरूद्ध कोई आन्दोलन किया? इस दौर में जितने धार्मिक ग्रंथ या महाकाव्य लिखे गये उनमें मुगलों के बिरूद्ध एक शब्द भी नहीं लिखा गया। यहां तक कि तुलसी के रामचरितमानस में भी न तो हिन्दू शब्द का इस्तेमाल किया गया और न ही तुलसी ने मुगलों के बिरूद्ध एक शब्द भी लिखा  जबकि तुलसी दास मुग़ल सम्राट अकबर के समकालीन थे तथा अकबर के समय में ही धर्म परिवर्तन ज्यादा हुआ। यहां तक कि तमाम प्रभावी हिन्दू राजपूत राजाओं ने मुगल सम्राट अकबर और मुगल  राजकुमारों से अपनी बहन बेटियों की शादियां की तथा रोटी बेटी का सम्बंध बनाया । दोनों ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई । क्या मामला बिगड़ गया कि आज ये पण्डित पुजारी और इनकी पार्टी मुसलमानो से घृणा करने लगे हैं ?शायद आज वोट का मामला है इसीलिए मुसलमानों और हिन्दुओं के बीच घृणा पैदा कर वोट ब

भारत में प्रथम संरक्षण व्यवस्था कब शुरू हुई

 दक्षिण भारत के एक स्मारक स्तंभ में लिखा है ...   -महात्मा ज्योतिबा फुले- शूद्र आंदोलन के पहले क्रांतिकारी महानायक थे,महात्मा ज्योतिबा फुले जिन्होंने भारत में व्याप्त मनुवाद की नींव हिलाकर समूचे भारत के बहुजनों को जाग्रत कर आंदोलित कर दिया- (ज्योतिबा फुले -१८२७-१८९ ० ) 1827-1890 -छत्रपति शाहूजी महाराज- ( १८७४-१९ २२ ) 1874-1922 शूद्र आंदोलन के दूसरे महापुरुष थे छत्रपति शाहू जी महाराज वे विश्व प्रसिद्ध छत्रपति शिवाजी महराज के वंशज और कुर्मी जाति के थे एवं ओबीसी के सदस्य थे, महाराष्ट्र के कोल्हापुर राज्य के राजा थे,उनके पिताजी के समय से उन्होंने देखा कि राज कर्मचारी सभी ब्राह्मण थे,शाहू जी महाराज १ ९ ०२  (1902) में राजा बनने के बाद राज्य में शूद्रों के लिए ५० % (50%) पद संरक्षित कर दिया,भारत के इतिहास में यह प्रथम संरक्षण व्यवस्था शुरू हुई,पूर्व बंगाल में महा मनीषी श्री गुरु चाँद ठाकुर नें भी १ ९ ०७  1907 में अविभक्त बंगाल में प्रथम संरक्षण व्यवस्था चालू की, शाहू जी महाराज शूद्रों के लिए राजकोष से उनके लिए स्कूल कॉलेज एवं हॉस्टल का निर्माण किया.  शूद्र आंदोलन के तीसरे मनीषी दक्षिण भारत के

हमारा देश खतरे में क्यों है जानिए

 समय निकालकर पूरा जरुर पढेI 1 :- जब दो वोट के अधिकार के लिए बाबा साहब लंदन में अंग्रेजों से लड़ रहे थे। तो उस समय मो० अली जिन्ना और सर आगार खां नाम के दो मुसलमान भाइयो ने बाबा साहब का साथ दिया था। . 2 :- जब ज्योतिबा फुले हमारे लिए पहली बार स्कूल खोल रहे थे तब उस समय उस्मान शेख नाम के मुसलमान भाई ज्योतिबा फुले को  जमीन दिया था। . 3 :- माता सावित्री बाई फुले को उस्मान शेख की बहन फातिमा शेख ने सावित्री बाई फुले का साथ दिया और पहली शिक्षिका भी हुई। . 4 :- जब बाबा साहब हमें पानी दिलाने के लिए सत्यग्रह कर रहे थे तो उस सत्यग्रह को करने के लिए जमीन मुसलमान भाइयों ने दिया था। . 5 :- बाबा साहब को संविधान लिखने के लिए संविधान सभा में नहीं जाने दिया जा रहा था, तब बंगाल के 48% मुसलमान भाइयों ने ही बाबा साहब को चुनकर संविधान में भेजा था। खुद हमारे अपने लोगो ने वोट नही दिया था बाबा साहब को। . 6) मुसलमान टीपू सुल्तान ने हमारी बहन बेटी को तन ढकने का अधिकार दिया था अन्यथा हिन्दू ब्राह्मण के  कारण हमारी बहन बेटी को स्तन खुलें रखने के लिए मजबूर किया गया था 😢 . हमारा दुश्मन मुसलमान नही है। हमारा दुश्मन वो

बौद्ध धर्म में कौन-कौन से त्योहार आते हैं जानिए

वर्तमान काल्पनिक हिन्दूधर्म,के संस्कार और त्यौहार वैदिक ब्राह्मणों ने बौद्ध धर्म से चुराये और अपना लेबल चिपकाकर लोगों के बीच में उतार दिया है.....       --------जानिये और अनुसरण कीजिये--------- 1)गुरु पूर्णिमा-  गौतम बुद्ध ने आषाढ़ पूर्णिमा के दिन सारनाथ में प्रथम बार पांच परिज्रावको को दीक्षा दी थी। ये दिन बौद्धों के जीवन में गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता था। बौद्ध धर्म समाप्त करने के बाद ब्राह्मण धर्म के ठेकेदारो ने इस पर कब्ज़ा किया और अपने पाखंडी धोखेबाज ढोंगी साधुओं को इससे जोड़ दिया... 2) कुम्भ का मेला- कुम्भ का मेला बौद्ध सम्राट हर्षवर्धन ने शुरू करवाया था जिसका उद्देश्य बुद्ध की विचारधारा को फैलाना था। इस मेले में दूर दूर से बौद्ध भिक्षु,श्रमण,राजा,प्रजा,सैनिक भाग लेते थे। बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मणों ने इसको अपने धर्म में लेकर अन्धविश्वास घुसा दिया। 3)चार धाम यात्रा- बौद्ध धर्म में चार धामों का विशेष महत्त्व था। ब्राह्मणों ने बौद्ध धर्म के चार धामो को अपने काल्पनिक देवी-देवताओ के मंदिरो में बदल दिया और अपने धर्म से जोड़ दिया आज यही चारो धाम धूर्तों के लिए मोक

विजयदशमी क्यों मनाया जाता है विवरण देखें

 अशोक विजय दशमी भारत के विश्वगुरु खिताब का केंद्र नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट करने के लिए ब्राह्मणों ने 10 साल तक लगातार यज्ञ किया था क्योंकि उंसके खारिच करने की वजह से ब्राह्मण धर्म का पाखंड समाज मे फैल नही रह था इसलिए ये विश्वविद्यालय एक चुनौती बन गया था इसके पहले वे तक्षशिला, विक्रमशिला,तेलहंडा जैसी प्रसिद्ध शिक्षा के केंद्रों को नष्ट कर चुके थे नालंदा आखिरी था! सच तो ये है कि 185 ईसा पूर्व जब ईरानी जोरोस्ट्रीयन सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने मोरिय वंश के दसवें बौद्ध शासक बृहदत्त को भरी सभा मे सबके सामने हत्या कर खुद को राजा घोषित किया प्रसिद्ध बौद्ध नगरी साकेत को अयोध्या नाम बदल कर बौद्ध भिक्खुओ का बेहिसाब कत्ल किया बौद्ध विहार खाली हो गए थे उन्हें नष्ट किया गया था!  बौद्ध भिक्खु के सर की कीमत 100 स्वर्ण मुद्राएं रखी थी फिर इतने सिर आये की घाघरा नदी बौद्ध भिक्खुओ के सर से पट गई सरयुक्त हो गई और उसका नाम सरयू पड़ गया और उसके राजकवि बाल्मीकि ने रामायण लिखकर पुष्यमित्र को राम के रूप में स्थापित किया जो मनु का ही वंशज था फिर वर्णव्यवस्था कज नींव भी रखवाई गई! फिर नालंदा को नष्ट करने के लिए

विजयादशमी क्यों मनाया जाता है

 “अशोक विजयदशमी”  ये दिन केवल भारत ही नहीं तो दुनिया के सारे देशों के इतिहास में बहुत ही महत्वपूर्ण है. अगर सम्राट अशोक ने बौद्ध ध्म्म की दीक्षा नहीं ली होती तो शायद आज दुनिया में बौद्ध धम्म नहीं दिखाई पडता। और उससे भी आगे दुनिया में “समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय” का अस्तित्व नहीं दिखाई देता। “अशोक विजयदशमी” महान सम्राट अशोक के कलिंग युद्ध में विजयी होने के दसवें दिन मनाये जाने के कारण इसे अशोक विजयदशमी कहते हैं। इसी दिन सम्राट अशोक ने बौद्ध धम्म की दीक्षा ली थी। विजय दशमी बौद्धों का पवित्र त्यौहार है। ऐतिहासिक सत्यता है कि महाराजा अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद हिंसा का मार्ग त्याग कर बुद्ध धम्म अपनाने की घोषणा कर दी थी। बी.एल. बौद्ध <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-5460100888476302"      crossorigin="anonymous"></script>

सम्मान के लिए बौद्ध धर्म परिवर्तन करें --

 सम्मान के लिए धर्म परिवर्तन करें ----- "डा.बी.आर.अम्बेडकर" सांसारिक उन्नति के लिए धर्म परिवर्तन चाहिए मैंने निश्चय कर लिया है कि मैं धर्म परिवर्तन अवश्य करूंगा, सांसारिक लाभ के लिए धर्म परिवर्तन नहीं करूंगा आध्यात्मिक भावना के अलावा और कोई मेरा ध्येय नहीं है,हिन्दू धर्म के सिद्धांत मुझे अच्छे नहीं लगते ये बुद्धि पर आधारित नहीं हैं,मेरे स्वाभिमान के विरुद्ध हैं आपके लिए आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों दृष्टिकोण से धर्म परिवर्तन बहुत जरूरी है, कुछ लोग सांसारिक लाभ के लिए धर्म परिवर्तन करने की कल्पना का उपहास करते हैं,मरने के बाद आत्मा का क्या होगा इसे कौन जानता है ? वर्तमान जीवन में जो सम्मानपूर्वक जीवन नहीं बिता सकता उसका जीवन निरर्थक है आत्मा की बातें करने वाले ढ़ोंगी हैं,धूर्त हैं, हिन्दू धर्म में रहने के कारण जिनका सब कुछ बर्बाद हो चुका हो ,जो अन्न और वस्त्र के लिए मोहताज बन गए हों,जिनकी मानवता नष्ट हो चुकी है ऐसे लोग सांसारिक लाभ के लिए विचार न करें तो क्या वे आकाश की ओर टकटकी लगाए देखते रहेंगे या अगले जन्म में सुखी होने का स्वप्न देखते रहेंगे,पैदाइशी अमीरीपन और मुफ्तखोरीपन

धम्मदीक्षा दिवस (धम्मचक्रप्रवर्तन दिवस) 14 अक्टूबर

 धम्मदीक्षा दिवस (धम्मचक्रप्रवर्तन दिवस)14अक्टूबर पर आप सभी साथियों को बहुत बहुत हार्दिक बधाई-- डा.बाबासाहब अम्बेडकर ने 1935 में घोषणा की थी कि मैं हिंदू धर्म में पैदा अवश्य हुआ हूं परंतु हिंदू के रूप से मरूँगा नहीं  उन्होंने सभी धर्मों का भली-भीति अध्ययन किया और पाया कि केवल बौद्ध धम्म ही विज्ञान की कसौटी पर पूरा उतरता हे ये धर्म समानता,स्वतंत्रता,न्याय व प्रज्ञा (ज्ञान) पर आधारित है,इसमें मानव प्रेम, अपनापन ब भाईचारा है यह भ्रमो के जाल में नही फसाता है इसमें कर्मकांड और पाखंड नहीं है, यह ना तो स्वर्ग या मुक्ति का प्रलोभन देता है और ना ही आत्मा और परमात्मा के चक्कर में उलझाता है इसमें न तो देवी-देवताओं को खुश करना होता है और न ही देवी-देवताओं से डरना होता है,इसमें देवी-देवताओं द्वारा किसी अनिष्ट का भी कोई डर नहीं होता, इसमें तो केबल बुद्ध की शिक्षाओं को जीवन में उतार कर दुख और भय से मुक्त होकर ‘संपूर्ण मानव’ जीवन जीना होता है, उन्होंने पाया कि बौध धम्म ‘अत्त दीपो भव’ अर्थात अपना दीपक स्वयं बनो का सिद्धांत देकर मनुष्य को अपने आप पर निर्भर होना सिखाता है.    उन्होंने घोषणा की कि वे 14 अ

हैंडलूम मशीन

हैंडलूम मशीन को कपड़ों बनाने के लिए प्रेम नुमा मशीन का इस्तेमाल होता है जिसमें यह पता चलता है कि टेक्सटाइल में कपड़ा बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है जिसमें जैसे साड़ी चद्दर , towel bed sheet shirting etc.  it