सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

धम्मदीक्षा दिवस (धम्मचक्रप्रवर्तन दिवस) 14 अक्टूबर

 धम्मदीक्षा दिवस (धम्मचक्रप्रवर्तन दिवस)14अक्टूबर पर आप सभी साथियों को बहुत बहुत हार्दिक बधाई--

डा.बाबासाहब अम्बेडकर ने 1935 में घोषणा की थी कि मैं हिंदू धर्म में पैदा अवश्य हुआ हूं परंतु हिंदू के रूप से मरूँगा नहीं  उन्होंने सभी धर्मों का भली-भीति अध्ययन किया और पाया कि केवल बौद्ध धम्म ही विज्ञान की कसौटी पर पूरा उतरता हे ये धर्म समानता,स्वतंत्रता,न्याय व प्रज्ञा (ज्ञान) पर आधारित है,इसमें मानव प्रेम, अपनापन ब भाईचारा है यह भ्रमो के जाल में नही फसाता है इसमें कर्मकांड और पाखंड नहीं है, यह ना तो स्वर्ग या मुक्ति का प्रलोभन देता है और ना ही आत्मा और परमात्मा के चक्कर में उलझाता है इसमें न तो देवी-देवताओं को खुश करना होता है और न ही देवी-देवताओं से डरना होता है,इसमें देवी-देवताओं द्वारा किसी अनिष्ट का भी कोई डर नहीं होता, इसमें तो केबल बुद्ध की शिक्षाओं को जीवन में उतार कर दुख और भय से मुक्त होकर ‘संपूर्ण मानव’ जीवन जीना होता है, उन्होंने पाया कि बौध धम्म ‘अत्त दीपो भव’ अर्थात अपना दीपक स्वयं बनो का सिद्धांत देकर मनुष्य को अपने आप पर निर्भर होना सिखाता है.

   उन्होंने घोषणा की कि वे 14 अक्तूबर 1956 को नागपुर शहर मे बुद्ध धम्म की दीक्षा लेंगे , समारोह में पहुंचने के लिये नागपुर की ओर आने वाली सभी गाडियो में रिकार्ड तोड़ भीड़ थी,लाखों लोग जैसे भी वे पहुँच सकते थे, धूमधाम से नागपुर पहुंचे, कई लोगों ने नागपुर पहुँचने के लिए अपने आभूषण तक बेच दिए, हज़ारो लोग ऐसे भी थे, जिनके पास रेल किराए तक के पैसे नहीं थे, फिर भी वे मीलों पद यात्रा करते हुए ‘भगवान बुद्ध की जय’, ‘बाबा साहब की जय’ के नारे लगाते हुए दीक्षा स्थल पर पहुँचे , लोग जत्थे बना-बनाकर आ रहे थे, वे इस प्रकार झूमते-गाते, यात्रा कर रहे थे, मानों जीवन की कोई अति प्रसन्न और महत्वपूर्ण यात्रा कर रहे हो, वे प्रसन्न क्यों न होते, यह दिन उनकी धार्मिक दासता के अंत का दिन था और मुक्ति – दिवस का महान पर्व, नारे लग रहे थे, ‘आकाश-पाताल एक करो बुद्ध धम्म स्वीकार करो -

  14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में लगभग दस लाख लोगों के विशाल जनसमूह के सामने त्रिशरण-बुद्ध शरणं गच्छामि, धम्म्म शरणं गच्छामि, संघ शरणं गच्छामि, और पंचशील – (1) हिंसा न करना, (2) चोरी न करना, (3) झूठ न बोलना, (4) व्याभिचार न करना और (5) नशा न करना, मंत्रों का बाबा साहब ने पाली भाषा में उच्चारण किया ओर बौध धम्म में प्रवेश कर गए,15 अक्तूबर 1956 को बाबा साहब ने स्वयं, लगभग लाखों  अनुयायियों को बौद्ध धम्म की दीक्षा दी,डॉ.अंबेडकर ने दीक्षा लेने वालो को निम्नलिखित 22 प्रतिज्ञा भी करवाईं-

वे बाईस प्रतिज्ञाएं निम्न हैं-

1. मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश को कभी ईश्वर नहीं मानूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूंगा .

2. मैं राम और कृष्ण को कभी ईश्वर नहीं मानूँगा, और न ही मैं उनकी पूजा करूंगा ।

3. मैं गौरी, गणपति आदि हिंदू धर्म के किसी देवी देवता को नहीं मानूँगा और न ही उनकी पूजा करूंगा .

4. ईश्वर ने कभी अवतार लिया है, इस पर मेरा विश्वास नहीं .

5. मैं ऐसा कभी नहीं मानूँगा कि तथागत बुद्ध विष्णु के अवतार है ऐसे प्रचार को मैं पागलपन और झूठा समझता हूँ .

6. मैं कभी श्राद्ध नहीं करूंगा और न ही पिंडदान करवाउँगा .

7. मैं बौध धम्म के विरूद्ध कभी कोई आचरण नहीं करूंगा .

8. मैं कोई भी क्रिया-कर्म ब्राह्मणों के हाथों से नहीं करवाऊंगा .

9. मैं इस सिद्धांत को मानूँगा कि सभी इंसान एक समान है .

10. मैं समानता की स्थापना का यत्न करूंगा .

11. मैं बुद्ध के आष्टांग मार्ग का पूरी तरह पालन करूंगा .

12. मैं बुद्ध के द्वारा बताई हुई दस परिमिताओ का पूरा पालन करूंगा .

13. मैं प्राणी मात्र पर दया रखूँगा और उनका लालन-पालन करूंगा.

14. मैं चोरी नहीं करूंगा .

15. मैं झूठ नहीं बोलूँगा .

16. मैं व्याभिचार नहीं करूंगा .

17. मैं शराब नहीं पीऊंगा .

18. मैं अपने जीवन को बुद्ध धम्म के तीन तत्वो-अथार्त प्रज्ञा, शील और करूणा पर ढालने का यत्न करूंगा .

19. मैँ मानव मात्र के विकास के लिए हानिकारक और मनुष्य मात्र को उच्च – नीच मानने वाले अपने पुराने हिंदू धर्म को पूर्णत: त्यागता हूँ और बुद्ध धम्म को स्वीकार करता हूँ .

20. यह मेरा पूर्ण विश्वास है कि गौतम बुद्ध का धम्म ही सही धम्म हैं .

21. मैं यह मानता हूँ कि अब मेरा नया जन्म हो गया है .

22. मैं यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि आज से मैं बुद्ध धम्म के अनुसार आचरण करूँगा .

बाब साहब के धर्म परिवर्तन पर हिंदू नेताओं ने बहुत शोर-गुल किया ,बाबा साहब ने स्पष्ट किया कि हिंदुओं को असल चिंता इस बात की हैं कि उनकी गंदगी कौन उठाएगा ? सफाई आदि का काम कौन कंरेगा ? उनके मृत पशु कौन उठाएगा ? उनकी बेगार कौन करेगा ? आदि .

आज देर से ही सही, बाबा साहब के प्रयत्नो के फलस्वरूप, भारत सरकार ने अधिनियम जारी किए है कि बुद्ध धम्म अपनाने वाले दलित वर्ग के लोगों को आरक्षण की सुविधा पूर्व की भाँति दी जाती रहेगी,

बाबा साहब के प्रयासो का ही फल है कि बौद्ध धम्मचक्र आज भारत के राष्टीय ध्वज मे शान से लहरा रहा हैं और भारत की मुद्रा मे अशोक स्तंभ के शेर और संसद भवन के मुख्य द्वार पर अंकित ‘सत्यमेव जयते’ भारत पर बौद्ध धम्म के आधिपत्य का उदघोष कर रहा है .

हर एक मनुष्य का जीवन विषयक तत्वप्रणाली होनी चाहिए क्योंकि अपने आचरण को नापने हर एक के पास कोई न कोई मानदंड होना चाहिए,तत्वप्रणाली कुछ और न होकर अपने जीवन को नापने का एक मानदंड ही होती है,मेरी सामाजिक तत्वप्रणाली निश्चय ही तीन शब्दो मे समाहित की जा सकती है वे हैं स्वतंत्रता,समानता और बन्धुत्व,और मैंने यह तत्वप्रणालियां अपने गुरु तथागत बुद्ध से ली हैं जिसमे असीमित स्वतंत्रता,समानता,बन्धुत्व तथा न्याय का महासागर है इसीलिए मैंने तथागत बुद्ध की शरण में जाने का फैसला किया है..

  "डा. बाबासाहब अम्बेडकर"

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रथ यात्रा क्यों निकाली जाती है ||

 रथ यात्रा आठवीं शताब्दी के मध्य में उड़ीसा में भौमकारा साम्राज्य शुरू हुआ। उनके समय के दौरान और उनके बाद आने वाले तुंग और भोज राजवंशों के राजाओं के समय में, बौद्ध धर्म उड़ीसा में व्यापक था। मध्य एशिया के खोतान, कूचा आदि से भगवान बुद्ध की रथयात्राएं भी जगन्नाथ पुरी से निकलती थीं। विवेकानंद यह भी कहते हैं कि बुद्धधम्म के पतन के दौरान उनका हिंदूकरण किया गया था। बुद्ध, धम्म और संघ क्रमशः जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र में परिवर्तित हो गए। उन्नीसवीं सदी में, भीम भोई ने अन्य बौद्ध उपासकों की मदद से, जगन्नाथ के मंदिर को बौद्धों को वापस दिलाने का प्रयास किया। लेकिन जब उन्हें याद दिलाया गया कि धम्म के लिए खून बहाना धम्म के सिद्धांत के खिलाफ है, तो उन्होंने प्रयास छोड़ दिया। उड़ीसा में हर जगह बौद्ध स्तूप, विहार, चैत्य और स्तंभ पाए जाते हैं। हाल ही में उदयगिरि के पास तीसरी शताब्दी का एक स्तंभ मिला था। आगे की खुदाई से सिंहप्रस्थ महाविहार का पता चला। बाद में खुदाई में भूमिपार्श मुद्रा में तथागत बुद्ध की 10 फुट ऊंची मूर्ति का पता चला। वह मूर्ति एक भव्य चैत्य में थी। इसके अलावा वहां पर तथागत बुद्ध की सौ

विजयादशमी क्यों मनाया जाता है

 “अशोक विजयदशमी”  ये दिन केवल भारत ही नहीं तो दुनिया के सारे देशों के इतिहास में बहुत ही महत्वपूर्ण है. अगर सम्राट अशोक ने बौद्ध ध्म्म की दीक्षा नहीं ली होती तो शायद आज दुनिया में बौद्ध धम्म नहीं दिखाई पडता। और उससे भी आगे दुनिया में “समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय” का अस्तित्व नहीं दिखाई देता। “अशोक विजयदशमी” महान सम्राट अशोक के कलिंग युद्ध में विजयी होने के दसवें दिन मनाये जाने के कारण इसे अशोक विजयदशमी कहते हैं। इसी दिन सम्राट अशोक ने बौद्ध धम्म की दीक्षा ली थी। विजय दशमी बौद्धों का पवित्र त्यौहार है। ऐतिहासिक सत्यता है कि महाराजा अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद हिंसा का मार्ग त्याग कर बुद्ध धम्म अपनाने की घोषणा कर दी थी। बी.एल. बौद्ध <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-5460100888476302"      crossorigin="anonymous"></script>

कहीं बुद्ध पुत्र राहुल तो हनुमान नहीं ?

 #बुद्ध_पुत्र_राहुल एक महान धम्म धम्म प्रचारक थे। वे अपने करुणामय स्वभाव और त्यागी वृत्ति से अर्हंत पद पर पोहच गए। संघ के अनुशासन की जिम्मेवारी आदरणीय भंते राहुल पर थी। भिखखु संघ में सम्मलित होने वाले श्रमनेरो को प्रशिक्षित करने की मुख्य जिम्मवारी भंते राहुल की थी। महायानी बुद्धिज़्म के अनुसार, जापान में #sonja सोंजा याने, #अर्हत_पद तक पोहचे हुवे भंते। #sonja यह #संत शब्द से मिलता जुलता शब्द है जापान में 16 अर्हत songa को पूजनीय मानते है, उसमेसे ही एक  #Ragora_Sonja (रेगोरा सोंग्ज़ा) एक है। यह Ragora Sonja यह कोई और नहीं बल्कि, बुद्ध पुत्र राहुल है। जापानी वर्णमाला में ला के बदले रा यह वर्ण है। ब्राह्मणी साहित्य यह बुद्धोत्तर साहित्य है इसमें कोई संदेह नही, रामायण के सारे पात्र यह बुद्ध जातक और बुद्ध इतिहास से प्रेरित है। हनुमान यह भी एक ऐसा ही character है। हनुमान की मूर्ति जिसके सीने में राम की प्रतिमा होती है,  मूर्ति बुद्ध पुत्र भंते राहुल की मूर्ति की नकल है। इतना ही नही, हनुमान चालीसा भी बुद्ध के जयमंगल अठ्ठ गाथा से चुराई गई है या फिर उससेही प्रेरित है। जपान में भंते राहुल(Ragora S