सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सम्मान के लिए बौद्ध धर्म परिवर्तन करें --

 सम्मान के लिए धर्म परिवर्तन करें -----

"डा.बी.आर.अम्बेडकर"

सांसारिक उन्नति के लिए धर्म परिवर्तन चाहिए मैंने निश्चय कर लिया है कि मैं धर्म परिवर्तन अवश्य करूंगा,

सांसारिक लाभ के लिए धर्म परिवर्तन नहीं करूंगा आध्यात्मिक भावना के अलावा और कोई मेरा ध्येय नहीं है,हिन्दू धर्म के सिद्धांत मुझे अच्छे नहीं लगते ये बुद्धि पर आधारित नहीं हैं,मेरे स्वाभिमान के विरुद्ध हैं आपके लिए आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों दृष्टिकोण से धर्म परिवर्तन बहुत जरूरी है, कुछ लोग सांसारिक लाभ के लिए धर्म परिवर्तन करने की कल्पना का उपहास करते हैं,मरने के बाद आत्मा का क्या होगा इसे कौन जानता है ? वर्तमान जीवन में जो सम्मानपूर्वक जीवन नहीं बिता सकता उसका जीवन निरर्थक है आत्मा की बातें करने वाले ढ़ोंगी हैं,धूर्त हैं, हिन्दू धर्म में रहने के कारण जिनका सब कुछ बर्बाद हो चुका हो ,जो अन्न और वस्त्र के लिए मोहताज बन गए हों,जिनकी मानवता नष्ट हो चुकी है ऐसे लोग सांसारिक लाभ के लिए विचार न करें तो क्या वे आकाश की ओर टकटकी लगाए देखते रहेंगे या अगले जन्म में सुखी होने का स्वप्न देखते रहेंगे,पैदाइशी अमीरीपन और मुफ्तखोरीपन को सिखाने वाले वेदांत का गरीबों के लिए क्या लाभ है ? वेदांत का प्रचार मानवता के मजाक ( उपहास ) मात्र इससे बचने का एकमात्र उपाय धर्म परिवर्तन है,सद्धर्म पर आचरण करना है.

     मैं साफ शब्दों में कहना चाहता हूँ कि मनुष्य धर्म के लिए नहीं होता बल्कि मनुष्य के लिए धर्म होता है,मानवता की प्राप्ति करना है तो धर्म परिवर्तन कीजिए समानता और सम्मान चाहिए तो धर्म परिवर्तन कीजिए स्वतंत्रता से जीवनोपार्जन करके अपने आपको और अपनी संतान को सुखी बनाना है तो धर्म परिवर्तन कीजिए,जो धर्म आपको मानवता की कीमत नहीं देता,उस धर्म में क्यों रहते हो,जो धर्म आपको मंदिरों में जाने नहीं देता उससे क्यों चिपके हए हो ? जो आपको पानी पीने नहीं देता उस अधर्म में क्यों रहते हो ? जो धर्म आपको शिक्षा -दीक्षा से वंचित रखता है उसमें क्यों रहते हो ? जो आपको नौकरी दिलाने में बाधा डालता है उस धर्म को त्याग दीजिए जो धर्म आपका पग -पग पर अपमान करता है ,उसमें क्यों रहते हो ? जिस धर्म में मानवता के आचरण करने पर रोक लगी हो वह धर्म नहीं है,वह केवल सिरफिरे लोगों का अलङ्कार मात्र है,जिस धर्म में मनुष्यता का प्रचार अधर्म है वह धर्म न होकर अधर्म है,जिस धर्म में अपवित्र पशु के स्पर्श को पवित्र माना जाता है लेकिन मनुष्य के स्पर्श को अपवित्र माना जाता है वह धर्म न होकर केवल बकवास है,जो धर्म एक वर्ग को शिक्षा सीखने के लिए मना करता है ,धन संचय करने की मनाही करता है ,शस्त्र धारण करने की मनाही करता है ,ऐसा धर्म ,धर्म न होकर मनुष्य के जीवन में एक विडम्बना है,जो धर्म अशिक्षितों को अशिक्षित रहने के लिए कहता है ,निर्धनों को निर्धन बने रहने को कहता है ऐसा उपदेश देने वाला धर्म नहीं है ,बल्कि दंड है ,मेरा मत है कि जब तक धर्म परिवर्तन की घोषणा की सार्थकता को न समझें तब तक कोई भी धर्म परिवर्तन न करें,मैंने इतने विस्तार से इस विषय पर इसलिए अपने विचार प्रकट किए हैं कि किसी के मन में किसी प्रकार का संदेह न रहे और किसी का मन डांवाडोल न हो,मेरे विचारों का प्रभाव आप पर कितना पडेगा इस सम्बंध में मैं कछ कहना नहीं चाहता,मेरे लोगों की भलाई और बुराई किस कार्य में है इसे किसी की समालोचना या निन्दा की परवाह न करते हुए अपनी बात को कहता है ,उसी को मैं नेता कहता हूं,मैंने अपना कर्तव्य पूरा किया है अब इस पर निर्णय लेने की जिम्मेदारी आप पर है,आज का प्रसंग निर्णय का है इसलिए आपको इसे ध्यान में रखना चाहिए ,आज आप स्वतंत्र होने की भावना रखेंगे तो आपकी आने वाली पीढ़ी भी स्वतंत्र होगी और अगर आज आपने पराधीन रहने का निर्णय किया तो आपकी आगामी पीढ़ी भी पराधीन ही रहेगी, इस शुभ अवसर पर गौतम बुद्ध ने महापरिनिर्वाण को प्राप्त करने के पूर्व भिक्खुसंघ को जो उपदेश दिया था उसका वर्णन महापरिनिर्वाण सूत्र में दिया गया है,उसी की याद आज मुझे आ रही है महापरिनिर्वाण से पूर्व बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा था - “ आप सूरज की भांति स्वयं प्रकाशवान बनिए,पृथ्वी की भांति प्रकाशवान् बनिए और अपने ऊपर विश्वास रखिए ,किसी दूसरे पर निर्भर न रहिए सत्य पथ पर चलिए,सत्य पर आश्रित रहिए,दूसरे किसी की भी शरण में मत जाइए,आपका इसी में उद्धार है-

"डा.बी.आर.अम्बेडकर"

            -----------मिशन अम्बेडकर

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रथ यात्रा क्यों निकाली जाती है ||

 रथ यात्रा आठवीं शताब्दी के मध्य में उड़ीसा में भौमकारा साम्राज्य शुरू हुआ। उनके समय के दौरान और उनके बाद आने वाले तुंग और भोज राजवंशों के राजाओं के समय में, बौद्ध धर्म उड़ीसा में व्यापक था। मध्य एशिया के खोतान, कूचा आदि से भगवान बुद्ध की रथयात्राएं भी जगन्नाथ पुरी से निकलती थीं। विवेकानंद यह भी कहते हैं कि बुद्धधम्म के पतन के दौरान उनका हिंदूकरण किया गया था। बुद्ध, धम्म और संघ क्रमशः जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र में परिवर्तित हो गए। उन्नीसवीं सदी में, भीम भोई ने अन्य बौद्ध उपासकों की मदद से, जगन्नाथ के मंदिर को बौद्धों को वापस दिलाने का प्रयास किया। लेकिन जब उन्हें याद दिलाया गया कि धम्म के लिए खून बहाना धम्म के सिद्धांत के खिलाफ है, तो उन्होंने प्रयास छोड़ दिया। उड़ीसा में हर जगह बौद्ध स्तूप, विहार, चैत्य और स्तंभ पाए जाते हैं। हाल ही में उदयगिरि के पास तीसरी शताब्दी का एक स्तंभ मिला था। आगे की खुदाई से सिंहप्रस्थ महाविहार का पता चला। बाद में खुदाई में भूमिपार्श मुद्रा में तथागत बुद्ध की 10 फुट ऊंची मूर्ति का पता चला। वह मूर्ति एक भव्य चैत्य में थी। इसके अलावा वहां पर तथागत बुद्ध क...

तथागत बुद्ध ने ज्ञान के सार को कुल 55 बिंदुओं में समेट दिया *

 *तथागत बुद्ध ने ज्ञान के सार को कुल 55 बिंदुओं में समेट दिया *             👉 चार - आर्य सत्य             👉 पाँच - पंचशील              👉 आठ - अष्टांगिक मार्ग और               👉 अड़तीस - महामंगलसुत  👉 *बुद्ध के चार आर्य सत्य*     1. दुनियाँ में दु:ख है।      2. दु:ख का कारण है।      3. दु:ख का निवारण है। और      4. दु:ख के निवारण का उपाय है।               ********** *पंचशील* 1. हिंसा न करना 2. झूँठ न बोलना 3. चोरी नहीं करना 4. व्यभिचार नहीं करना और 5. नशापान/मद्यपान नहीं करना                    ******** *अष्टांगिक मार्ग* 1. सम्यक दृष्टि (दृष्टिकोण) /Right view 2. सम्यक संकल्प / Right intention 3. सम्यक वाणी / Right speech 4.  सम्यक कर्मांत/ Right action 5. सम्यक आजीविका/ Right livelihood (profession) 6....

*मार्च पूर्णिमा का महत्व (पालगुना पूर्णिमा)* | इस दिन पूरे कर्नाटक को धम्मपद उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

  *मार्च पूर्णिमा का महत्व (पालगुना पूर्णिमा)* यह मेदिन पूर्णिमा के दिन था, धन्य, लगभग 20,000 शिष्यों के एक अनुचर के साथ, वेलुवनारमाया, राजगृह से किम्बुलवथपुरा तक अपने पिता, राजा सुद्दोधन, रिश्तेदारों और सख्य कबीले (एक जनजाति में रहने वाले) से मिलने के लिए गए थे। उत्तरी भारत, जिसमें गौतम या शाक्यमुनि बुद्ध का जन्म राजकुमार सिद्धार्थ के रूप में हुआ था)। यह कहा जा सकता है कि मेदिन पोया का मुख्य विषय, बुद्ध की राजगृह से किंबुलवथपुरा तक की यात्रा से संबंधित है, इसके सात साल बाद रिश्तेदारों से मिलने के लिए अभिनिस्करमणय। वेसाक पोया दिवस पर बुद्ध हुड प्राप्त करने के बाद, और धम्मचक्कपवत्तन सुत्त- "धम्म का पहिया, एसाला पूर्णिमा के दिन, वह कुछ समय के लिए राजगृह में रहता रहा। राजा सुद्दोधन अपने प्यारे बेटे को देखने की एक बड़ी इच्छा से पीड़ित था। - गौतम बुद्ध। हालाँकि, रॉयल डिग्निटी के कारण, शुद्धोदन ने अपने बेटे- सिद्धार्थ गौतम बुद्ध से मिलने के लिए खुद यात्रा नहीं की, लेकिन, अपने मंत्रियों के नेतृत्व में दूतों के बाद दूतों को किम्बुलवथपुरया की यात्रा करने के लिए बुद्ध से निवेदन किया। ये ...