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चिपको आंदोलन की वास्तविक प्रणेता गौरा देवी क्यों है जानिए


📖 इतिहास के पन्नों से... 25 अक्टूबर,

 


🌷गौरा देवी,  (25.10.1925-4.7.1991)

🌷चिपको आंदोलन की वास्तविक प्रणेता.....

✍️गौरा देवी का जन्म 25 अक्टूबर 1925 में उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले के लाता गांव में नारायण सिंह जी के घर में हुआ था। गौरा देवी ने कक्षा पांच तक की शिक्षा ग्रहण की थी। मात्र 11 वर्ष की उम्र में इनका विवाह रैंणी गांव के मेहरबान सिंह से हुआ।


✍️26.3.1974

🌷‘चिपको आंदोलन’ 26 मार्च, 1974 को पेड़ों की कटाई रोकने के लिए शुरू हुआ था। यह आंदोलन जब हुआ था जब उत्तराखंड के रैंणी गाँव के जंगल के लगभग ढाई हज़ार पेड़ों को काटने की नीलामी हुई थी, तब गौरा देवी जो उस समय रैणी महिला मंगल दल की अध्यक्षा थी। इनके नेतृत्व मे 21 अन्य महिलाओं के साथ इस नीलामी का विरोध किया गया। परन्तु इनके विरोध के बावजूद सरकार और ठेकेदार के निर्णय में बदलाव नहीं आया। ठेकेदार के आदमी जब पेड़ काटने पहुँचे, तो गौरा देवी और उनके 21 साथियों ने उन लोगों को समझाने की कोशिश की। लेकिन जब उन्होंने पेड़ काटने की जिद की तो महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उन्हें ललकारा और कहा की इन पेड़ों को काटने से पहले हमे काटना होगा। अंततः

ठेकेदार को उनसे हार कर जाना पड़ा। इसके बाद में महिलाओं ने स्थानीय वन विभाग के अधिकारियों के सामने अपनी बात रखी। फलस्वरूप रैंणी गाँव का जंगल नहीं काटा गया। तथा यहीं से “चिपको आंदोलन” की शुरुआत हुई।


🌷श्रेय    

✍️रैणी की इस अभूतपूर्व घटना ने सबको अचंभित कर दिया था। उस समय धौली गंगा घाटी लकड़ी की ठेकेदारी कर रहे एनजीओ टाईप पत्रकार चंडी प्रसाद भट्ट को इस खबर मे अपनी प्रसिद्धि की संभावनाए नजर आई तथा इसके बाद शुरू हुआ आंदोलन का श्रेय हड़पने का खेल, सोचने की बात यह है की यह पूरा आंदोलन रैणी की महिलाओ ने अकेले चलाया था। इस आंदोलन में उनका साथ रैणी के किसी पुरूष ने नही दिया तो वहाँ से सैकड़ो किलोमीटर दूर बैठे पर्यावरणविद चण्डी प्रसाद भट्ट और सुदरलाल बहुगुणा चिपको आंदोलन के नायक कैसे बन गये। दरसल हुआ ये की इस पूरे आंदोलन को इन दोनो ने हड़प लिया। जब दुनिया ने इस आंदोलन के बारे मे जाना तो पहाड़ की इस पहल को दुनियां ने सरमाथे लिया और सम्मानों का सिलसिला शुरू हुआ परन्तु विडबना यही रही कि गौरा देवी और उनकी साथियो को कोई सम्मान प्राप्त हुआ ही नहीं। पर्यावरण संरक्षण के नाम पर ये दोनों महान पुरूष नायक बन गये। 

✍️आज देश दुनिया चण्डी प्रसाद भट्ट और सुदर लाल बहुगुणा को ही चिपको के नायक के रूप में जानती है। गौरा देवी और उनके साथियो को नहीं। यदि कोई इस आंदोलन की जानकारी चाहता है तो तमाम लेख और सोशल साईटों पर चिपको के नेताओं में इन दोनों के ही नाम मिलते है। इस आंदोलन की हक़ीक़त पत्रकार सुनील कैथोला द्वारा लिखित संघर्षनामा और सुन्दर लाल बहुगुणा की सच्चाईयों पर लिखी ”सिल्यारा के संत” बया करती है।

✍️सवाल यही है की जब पेड़ों को कटाने से बचाने के लिऐ रैणी गांव की गौरा देवी और उनकी 21 साथी पेड़ों से चिपकी थी तब चिपको आंदलोन की शुरुआत की हुई थी तो इसके नायक चण्डी प्रसाद भट्ट और सुदर लाल बहुगुणा कैसे बन गए?


✍️चिपको की असली नायिका रैणी गांव की वो सभी 21 महिलाऐं और गौरादेवी है जिन्होंने ये लड़ाई लड़ी


नमो बुद्धाय

बी.एल. बौद्ध                                                        


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