सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

विजयदशमी क्यों मनाया जाता है विवरण देखें

 अशोक विजय दशमी


भारत के विश्वगुरु खिताब का केंद्र नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट करने के लिए ब्राह्मणों ने 10 साल तक लगातार यज्ञ किया था क्योंकि उंसके खारिच करने की वजह से ब्राह्मण धर्म का पाखंड समाज मे फैल नही रह था इसलिए ये विश्वविद्यालय एक चुनौती बन गया था इसके पहले वे तक्षशिला, विक्रमशिला,तेलहंडा जैसी प्रसिद्ध शिक्षा के केंद्रों को नष्ट कर चुके थे नालंदा आखिरी था!


सच तो ये है कि 185 ईसा पूर्व जब ईरानी जोरोस्ट्रीयन सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने मोरिय वंश के दसवें बौद्ध शासक बृहदत्त को भरी सभा मे सबके सामने हत्या कर खुद को राजा घोषित किया प्रसिद्ध बौद्ध नगरी साकेत को अयोध्या नाम बदल कर बौद्ध भिक्खुओ का बेहिसाब कत्ल किया बौद्ध विहार खाली हो गए थे उन्हें नष्ट किया गया था!


 बौद्ध भिक्खु के सर की कीमत 100 स्वर्ण मुद्राएं रखी थी फिर इतने सिर आये की घाघरा नदी बौद्ध भिक्खुओ के सर से पट गई सरयुक्त हो गई और उसका नाम सरयू पड़ गया और उसके राजकवि बाल्मीकि ने रामायण लिखकर पुष्यमित्र को राम के रूप में स्थापित किया जो मनु का ही वंशज था फिर वर्णव्यवस्था कज नींव भी रखवाई गई!


फिर नालंदा को नष्ट करने के लिए ब्राह्मणों ने खिलजी से मदद ली शंकराचार्य ने देश भर से ब्राह्मण और राजपूतों को ब्राह्मण धर्म के नाम पर इकट्ठा किया उस वक्त के ब्राह्मण धर्म के मसल पावर मलेट्री वेस अखाड़ों से पहलवानों,लठैतों को इकट्ठा कर विश्वविद्यालय को जला दिया गया हजारों लोगों का कत्ल किया!


इतिहासकार बताते है कि नालंदा उस समय का शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र था उसे जलाने के तीन महीने तक आग नही बुझी उसमे इतनी पुस्तके थी लगभग दस हजार विद्यार्थियों में दो हजार आचार्य होते थे जो एक शिक्षक/पांच विद्यार्थी आते थे इसलिए बेहतर अध्ययन हो पाता था।


इसके बाद भारत मे बौद्ध पर शिक्षा और धन,सम्पत्ति रखने पर बैन लगा दिया गया भारत की सबके प्रगतिशील  बहुसख्यक कौम अनपढ़ और गरीब हो गई इसीलिए भारत मे विज्ञान पैदा नही हो सका और जो पढ़े लिखे ब्राह्मण थे वे राजाओं के चाटूकार और पाखंडी थे कुछ अविष्कार का ख्याल इनके मन मे कभी आया ही नही।


उधर भारत का ज्ञान ले जाकर यूरोप में विज्ञान पैदा हुआ और पूरी दुनियां को बदल कर रख दिया भारत मे विदेशी राज करने लगे और ये परजीवी समाज मंदिरों और महलों में दान लेकर मजे करते रहे ब्राह्मण तुलसीदास दुवे ने रामचरित मानस में बौद्धों के त्यौहार को हड़पने के लिए अशोक विजय दशमी के दिन को रावण वध कराया!


 जबकि बाल्मीकि ने अपनी रामायण में रावण वध को चैत्र मांस की नौमी को लिखा जो आज भी चैत्र की नौमी को रामनौमी के रूप में गांव में उत्सव मनाया जाता है मेला लगता है इसीतरह बलि की याद में मनाया जाने वाला बौद्धों का त्यौहार को भी राम से जोड़कर कब्जा किया गया 11वी सदी में आया यात्री अलबेरुनी ने दीपाबली पर विस्तार से लिखा है!


  फिर अंग्रेज आये वे इतिहास खोजी पढ़े लिखे लोग थे और बौद्धों की धम्म लिपि को जॉन प्रिंसेप ने पढ़ा और यहां के मूलनिवासियों का सुनहरा दफन किया गया इतिहास खोदकर निकाला गया!


बाबा साहब ने दलितों के मंदिरो में प्रयास के लिए कई शांतिपूर्ण आंदोलन किये जबकि ब्राह्मणों ने हिंसा की वो समझ गए थे कि ब्राह्मण समाज दलित वर्ग से घृणा करत है इसलिए घृणा की जननी मनुस्मृति को 1927 में सार्वजनिक जला दिया था।


1936 में उन्होंने अपने भाषण में एलान कर दिया था कि वे अतिशूद्र वर्ण में पैदा हुए इसपर उनका वस नही था लेकिन शूद्र बनकर न मरु ये मेरे बस में है इसलिए मैं शुद्र बनकर नही मरूंगा!


उन्होंने कई धर्मो के ग्रंथों का गहरा अध्ययन किया और इतिहास की गहराई में जब घुसे तो पाया कि हिन्दू तो वे कभी थे ही नही उनके पुरखो का तो बौद्ध धम्म था जो समता,मैत्री,प्रेम,तर्क,ज्ञान पर आधारित था वे बोध धम्म ( ज्ञान का विचार) की ओर अपने दस लाख समर्थकों के साथ नागपुर के दीक्षा भूमि में बौद्ध धम्म को स्वीकार किया!


वह 14 अक्टूबर 1956 का दिन था बौद्धो का उत्सव महान सम्राट अशोक विजय दशमी का दिन था इसी दिन सम्राट अशोक ने बौद्ध धम्म की दीक्षा ली थी और बौद्ध धम्म को दुनियां में पहुचाया था चौरासी हजार तो सिर्फ बौद्ध स्तूप बनवाये थे!


उसी दिन को नागपुर की दीक्षा भूमि में बाबा साहब ने पुनर्जीवित कर दिया था सिंधु घाटी हड़प्पा सभ्यता के निर्माण करने वाले लोगो को अपने पुरखों के बौद्ध धम्म संस्कृति से परिचय करा कर उन्हें नया जीवन दिया था!


बौद्ध धम्म में सबसे बड़ी बात ये है कि उसमें जाति ही नही है सब बराबर है कोई ऊंच नीच नही है बौद्ध धम्म आत्मा, परमात्मा,पुनर्जन्म की अवधारणा को नही मानता वह तर्क और विज्ञान पर साबित की गई चीजों को ही स्वीकार करता है!


 लेकिन कुछ लोग अपनी जाति को साथ लेकर धम्म में प्रवेश करते है यह धम्म के लिए अच्छा नही है उन्हें बोध धम्म के बारे में गहरा ज्ञान देकर आत्मा,


परमात्मा,पुनर्जन्म और जाति को त्याग का वचन लेकर ही प्रवेश करवाया जाए जिससे इसके उत्कृष्ट विचार बहती नदी के जल के समान स्वच्छ और उपयोगी बने रहेंगे!


धम्म चक्क पवत्तन दिवस की बधाई

बी.एल. बौद्ध

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हमारा देश खतरे में क्यों है जानिए

 समय निकालकर पूरा जरुर पढेI 1 :- जब दो वोट के अधिकार के लिए बाबा साहब लंदन में अंग्रेजों से लड़ रहे थे। तो उस समय मो० अली जिन्ना और सर आगार खां नाम के दो मुसलमान भाइयो ने बाबा साहब का साथ दिया था। . 2 :- जब ज्योतिबा फुले हमारे लिए पहली बार स्कूल खोल रहे थे तब उस समय उस्मान शेख नाम के मुसलमान भाई ज्योतिबा फुले को  जमीन दिया था। . 3 :- माता सावित्री बाई फुले को उस्मान शेख की बहन फातिमा शेख ने सावित्री बाई फुले का साथ दिया और पहली शिक्षिका भी हुई। . 4 :- जब बाबा साहब हमें पानी दिलाने के लिए सत्यग्रह कर रहे थे तो उस सत्यग्रह को करने के लिए जमीन मुसलमान भाइयों ने दिया था। . 5 :- बाबा साहब को संविधान लिखने के लिए संविधान सभा में नहीं जाने दिया जा रहा था, तब बंगाल के 48% मुसलमान भाइयों ने ही बाबा साहब को चुनकर संविधान में भेजा था। खुद हमारे अपने लोगो ने वोट नही दिया था बाबा साहब को। . 6) मुसलमान टीपू सुल्तान ने हमारी बहन बेटी को तन ढकने का अधिकार दिया था अन्यथा हिन्दू ब्राह्मण के  कारण हमारी बहन बेटी को स्तन खुलें रखने के लिए मजबूर किया गया था 😢 . हमारा दुश्मन मुसलमान नही है। हम...
 क्रांतिकारी जय भीम  सिंधु घाटी की सभ्यता से यह  बात साबित होती है कि  सिंधु घाटी की सभ्यता पुरुष प्रधान सत्ता नहीं थी    सिंधु घाटी की सभ्यता स्त्री प्रधान सत्ता थी स्त्री ही घर की प्रमुख हुआ करती थी मुझे यह बताने की जरूरत नहीं  स्त्री प्रधान  सत्ता के कारण सिंधु घाटी की सभ्यता एक उन्नत सभ्यता थी  आर्यों के भारत पर कब्जा करने  के साथ ही   भारत का परिदृश्य बदल गया  भारत  अचानक पुरुष प्रधान देश बन गया स्त्री दमन सोशण का पर्याय बन गई   जो स्त्री कल तक घर की  प्रधान हुआ करती थी उसकी तक़दीर में पति के साथ सती होना लिख दिया गया  कल तक जिस स्त्री के फैसले परिवार के लिए  मान्य होते थे  उसे स्त्री के तकदीर में देवदासी होना लिख दिया गया बिना उसकी  मर्जी के लोग उसका फैसला करने लगे  सिंधु घाटी की उन्नत सभ्यता यह बताने के लिए काफी है कि स्त्रियों का   बौद्धिक स्तर  कितना ऊंचा और कितना बेहतर रहा होगा   स्त्रियों को दिमाग से विकलांग बनाने के लिए और उनका बौद्धिक स्तर नीचे ग...

सम्मान के लिए बौद्ध धर्म परिवर्तन करें --

 सम्मान के लिए धर्म परिवर्तन करें ----- "डा.बी.आर.अम्बेडकर" सांसारिक उन्नति के लिए धर्म परिवर्तन चाहिए मैंने निश्चय कर लिया है कि मैं धर्म परिवर्तन अवश्य करूंगा, सांसारिक लाभ के लिए धर्म परिवर्तन नहीं करूंगा आध्यात्मिक भावना के अलावा और कोई मेरा ध्येय नहीं है,हिन्दू धर्म के सिद्धांत मुझे अच्छे नहीं लगते ये बुद्धि पर आधारित नहीं हैं,मेरे स्वाभिमान के विरुद्ध हैं आपके लिए आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों दृष्टिकोण से धर्म परिवर्तन बहुत जरूरी है, कुछ लोग सांसारिक लाभ के लिए धर्म परिवर्तन करने की कल्पना का उपहास करते हैं,मरने के बाद आत्मा का क्या होगा इसे कौन जानता है ? वर्तमान जीवन में जो सम्मानपूर्वक जीवन नहीं बिता सकता उसका जीवन निरर्थक है आत्मा की बातें करने वाले ढ़ोंगी हैं,धूर्त हैं, हिन्दू धर्म में रहने के कारण जिनका सब कुछ बर्बाद हो चुका हो ,जो अन्न और वस्त्र के लिए मोहताज बन गए हों,जिनकी मानवता नष्ट हो चुकी है ऐसे लोग सांसारिक लाभ के लिए विचार न करें तो क्या वे आकाश की ओर टकटकी लगाए देखते रहेंगे या अगले जन्म में सुखी होने का स्वप्न देखते रहेंगे,पैदाइशी अमीरीपन और मुफ्तखोरीपन ...