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रथ यात्रा क्यों निकाली जाती है ||

 रथ यात्रा आठवीं शताब्दी के मध्य में उड़ीसा में भौमकारा साम्राज्य शुरू हुआ। उनके समय के दौरान और उनके बाद आने वाले तुंग और भोज राजवंशों के राजाओं के समय में, बौद्ध धर्म उड़ीसा में व्यापक था। मध्य एशिया के खोतान, कूचा आदि से भगवान बुद्ध की रथयात्राएं भी जगन्नाथ पुरी से निकलती थीं। विवेकानंद यह भी कहते हैं कि बुद्धधम्म के पतन के दौरान उनका हिंदूकरण किया गया था। बुद्ध, धम्म और संघ क्रमशः जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र में परिवर्तित हो गए। उन्नीसवीं सदी में, भीम भोई ने अन्य बौद्ध उपासकों की मदद से, जगन्नाथ के मंदिर को बौद्धों को वापस दिलाने का प्रयास किया। लेकिन जब उन्हें याद दिलाया गया कि धम्म के लिए खून बहाना धम्म के सिद्धांत के खिलाफ है, तो उन्होंने प्रयास छोड़ दिया। उड़ीसा में हर जगह बौद्ध स्तूप, विहार, चैत्य और स्तंभ पाए जाते हैं। हाल ही में उदयगिरि के पास तीसरी शताब्दी का एक स्तंभ मिला था। आगे की खुदाई से सिंहप्रस्थ महाविहार का पता चला। बाद में खुदाई में भूमिपार्श मुद्रा में तथागत बुद्ध की 10 फुट ऊंची मूर्ति का पता चला। वह मूर्ति एक भव्य चैत्य में थी। इसके अलावा वहां पर तथागत बुद्ध की सौ
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श्रवण कुमार कौन था? # श्रवण कुमार की कहानी

 #यह_शिल्पचित्र_चीन_देश_की_बौध्द_गुफाओ_से_लिया_गया ( ह्वेंनसांग चीनी यात्री )  किस तरह हमारे इतिहास को काल्पनिक कहानियों में बदला गया  बोधिसत्व #समण  पुष्कलावती मैं रहकर अपने अंधे माता-पिता की सेवा करते थे I एक दिन वे अपने अंधे माता-पिता के लिए फल लाने गए थे। तभी एक राजा जो शिकार के लिए  निकले समण को अनजाने में बिष-बाण  मार दिए I  समण बोधिसत्व मरे नहीं बल्कि उनका घाव औषधि से ठीक हो गया I माता - पिता की सेवा करनेवाले बोधिसत्व समण की स्मृति में पुष्कलावती मैं स्तूप बना था,जिसका जिक्र ह्वेनसांग अपनी यात्रा वृतांत में करते हैं I यहीं बोधिसत्व समण का इतिहास श्रवण कुमार की कथा के नाम से  वैदिक ब्राह्मणी धर्म ग्रंथ  पुराणों में दर्ज है I जिसकी नकल वैदिक ब्राह्मणों पंडित पुरोहितों ने अपने ग्रंथों में लिखा है... सिर्फ लिखा है कोई भी जमीनी एविडेंस तत्थ्य मौजूद नहीं। ( ह्वेनसांग के यात्रा )  बी.एल. बौद्ध   https://www.facebook.com/profile.php?id=100009084604583&mibextid=ZbWKwL

20 मार्च 1927.महाड़ सत्याग्रह | महाड सत्याग्रह क्यों किया गया था ?

 20 मार्च 1927 की वजह से हम स्वाभिमानपूर्वक जिंदा हैं- 20 मार्च 1927.महाड़ सत्याग्रह.. दोपहर का समय था, सूर्य किरणों का प्रतिबिंब तालाब के पानी में पङने लगा था, सर्वप्रथम डाँ अम्बेडकर तालाब की सीढ़ियों से निचे उतरे, निचे झुककर अपनी एक अंगुली से पानी को स्पर्श किया, यही वह ऐतिहासिक पल था, जिसने अस्पृश्य वर्ग में क्रान्ति का मार्ग प्रशस्त किया, यह एक प्रतीकात्मक क्रिया थी जिसके द्वारा यह सिद्ध किया गया था कि हम भी मनुष्य है हमें भी अन्य मनुष्यो के समान मानवीय अधिकार है-      अंग्रेजी शासनकाल के दौरान 1924में महाराष्ट्र के बम्बई विधानमंडल में एक विधेयक पारित करवाया गया जिसमें सरकार द्वारा संचालित संस्थाएं -अदालत, विधालय, चिकित्सालय, पनघट ,तालाब आदि सार्वजनिक स्थानों पर अछूतो को प्रवेश व उनका उपयोग करने का आदेश दिया गया, कोलाबा जिले में स्थित महाङ में स्थित चवदार तालाब में हालांकि ईसाई, मुस्लमान, फारसी,पशु, कूते सभी तालाब के पानी का उपयोग करते थे लेकिन अछूतो को यहाँ पानी छुने की ईजाजत नहीं थी, सवर्ण हिन्दुओं ने नगरपालिका के आदेश भी मानने से ईनकार कर दिया.        अछूतो के अघिकारो को छीन लेने

होली क्यों मनाई जाती है ? | होली कोई #त्योहार नहीं #शाहदत है !

  होली मनाने से पहले होली के बारे मे एक बार जरूर पूरी पोस्ट पढ़े  #होली कोई #त्योहार नहीं #शाहदत है ! प्रह्लाद के पिता का नाम हिरण्यकश्यप था।  हिरण्यकश्यप हरिद्रोही अर्थात आज का आधुनिक हरिदोई जिला जो उत्तर प्रदेश में है वहाँ का राजा था  ( हरि = ईश्वर और द्रोही = द्रोह करने वाला यानि यहाँ के लोग ईश्वर को नहीं मानते थे )  हिरण्यकश्यप की एक बहन थी जिसका नाम होलिका था। होलिका #युवा और #बहादुर लड़की थी।  वह आर्यों से युद्ध में हिरण्यकश्यप के समान ही लड़ती थी। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद निकम्मा और अवज्ञाकारी था। आर्यों ने उसे सुरा (शराब ) पिला- पिलाकर नशेड़ी बना दिया था। जिससे वह आर्यों का दास (भक्त) बन गया था। नशेड़ी हो जाने के कारण वह अपने नशेड़ी साथियों के  साथ बस्ती से बाहर ही रहता था।   # पुत्र मोह के कारण प्रह्लाद की माॅ अपनी ननद होलिका से उसके लिए खाना (भोजन) भेजवा दिया करती थी। एक दिन होलिका शाम के समय जब उसे भोजन देने गयी तो नशेड़ी आर्यों ने उसके साथ बदसलूकी की और फिर उसे जलाकर मार डाला।  प्रातः तक जब होलिका घर न पहुंची तब राजा को बताया गया। राजा ने पता लगवाया तो मालूम हुआ कि शाम

*मार्च पूर्णिमा का महत्व (पालगुना पूर्णिमा)* | इस दिन पूरे कर्नाटक को धम्मपद उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

  *मार्च पूर्णिमा का महत्व (पालगुना पूर्णिमा)* यह मेदिन पूर्णिमा के दिन था, धन्य, लगभग 20,000 शिष्यों के एक अनुचर के साथ, वेलुवनारमाया, राजगृह से किम्बुलवथपुरा तक अपने पिता, राजा सुद्दोधन, रिश्तेदारों और सख्य कबीले (एक जनजाति में रहने वाले) से मिलने के लिए गए थे। उत्तरी भारत, जिसमें गौतम या शाक्यमुनि बुद्ध का जन्म राजकुमार सिद्धार्थ के रूप में हुआ था)। यह कहा जा सकता है कि मेदिन पोया का मुख्य विषय, बुद्ध की राजगृह से किंबुलवथपुरा तक की यात्रा से संबंधित है, इसके सात साल बाद रिश्तेदारों से मिलने के लिए अभिनिस्करमणय। वेसाक पोया दिवस पर बुद्ध हुड प्राप्त करने के बाद, और धम्मचक्कपवत्तन सुत्त- "धम्म का पहिया, एसाला पूर्णिमा के दिन, वह कुछ समय के लिए राजगृह में रहता रहा। राजा सुद्दोधन अपने प्यारे बेटे को देखने की एक बड़ी इच्छा से पीड़ित था। - गौतम बुद्ध। हालाँकि, रॉयल डिग्निटी के कारण, शुद्धोदन ने अपने बेटे- सिद्धार्थ गौतम बुद्ध से मिलने के लिए खुद यात्रा नहीं की, लेकिन, अपने मंत्रियों के नेतृत्व में दूतों के बाद दूतों को किम्बुलवथपुरया की यात्रा करने के लिए बुद्ध से निवेदन किया। ये

भारत में आर्यो का प्रवेश

     कक्षा 6 की सरकारी किताब में लिखा भी गया है। की आर्य विदेशी है और भारत मे घुसपैठिये है। मुगल चले गये, अंग्रेज चले गए लेकिन सबसे पहले आर्यो ने भारत मे घुसपैठ की परन्तु वो नही गये।        इस पुस्तक के पन्ने में लिखा है कि आर्य भ्रमण के लिए घोड़ो का प्रयोग करते थे। आज जिन दलितों को घोड़ी पर बैठने का विरोध होता है। ये विरोध उन आर्यो व उन घोड़ो से मेल खाता है।।       आर्य अभी तक गये नही भारत से  आर्यो की पहचान ये है।  संविधान का विरोधी आर्य है। आरक्षण का विरोधी आर्य है। लोकतंत्र का विरोधी आर्य है। SC/ST/OBC/MIN के अधिकारों का विरोधी आर्य है।     और ये आर्य कोई और नहिं हिन्दू धर्म के ठेकेदार ही हैं।      कुछ लोग तर्क करने के बजाय गाली गलौज करेंगे। <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-5460100888476302"      crossorigin="anonymous"></script> जय भीम जय भारत नमोः बुद्धाय

पुराणों मे भगवान बुद्ध का ब्राह्मणीकरण | बुध्द जी को ब्राह्मणों ने कैसे भगवान बताया

 ●पुराणों मे भगवान बुद्ध का ब्राह्मणीकरण●      नमो बुद्धाय शुद्धाय (स्कंदपुराण, अवन्ती, 42/14)   मत्स्यः कूर्मों वराहश्च नरसिंहोअ्थ वामनः । रामो रामश्च कृष्णश्च बुद्धः कल्कि श्च ते दश।।   अर्थात --,मत्स्य, कूर्म, वराह,नरसिंह, वामन, राम (परशुराम),राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्की, -ये दश अवतार है ।भगवान बुद्ध नौवा अवतार है । (क) नमः कृष्णाय बुद्धाय नमो मलेच्छप्रणाशिने                  (भूमि 18/66) (ख) प्रलम्बहन्त्रे शितिवाससे नमो, नमोअ्स्तू बुद्धाय च दैत्यमोहिने ।। (सृष्टि 73/92) (प्रलय के विनाशक बलराम को नमस्कार,  दैत्यों को मोहने वाले बुद्ध को नमस्कार हो ) दैत्यानां नाशनार्थाय विष्णुना बुद्धरूपिणा।                              (,उत्तर, 263/69-70) नमोअ्स्तुहयरूपाय त्रिविक्रम नमोअ्स्तु ते । नमोअ्स्तु बुद्धरूपाय रामरूपाय कल्किने ।।                              (ब्रह्मपुराण, 122/69) अर्थात--हय (घोडे) का रूप धारण करने वाले त्रिविक्रम ( = विष्णु) आपको नमस्कार है ।हे बुद्ध का रूप धारण करने वाले ,हे राम का रूप धारण करने वाले और हे कल्की का अवतार धारण करने वाले तुम्हे नमस्कार हो । अपि पापसमाचाराः मोक