सिंधुघाटी सभ्यता के सृजनकर्ता शूद्र और वणिक...
सन 1882 में विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार सर मैक्समूलर ' ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अपने भाषण में कहा था कि -हम इतिहास क्यों पढ़ते हैं ? केवल यह जानने के लिए कि हमारे पूर्वज कौन थे ? यानी वे भौतिक रूप से कौन थे ? कैसे थे.?.वे क्या सोचते थे ? क्या करते थे ? उनके धार्मिक आचार -विचार और विश्वास क्या थे ? मैक्समूलर महोदय की इतिहास की इस परिभाषा को ध्यान में रखते हुए हम यह कह सकते हैं कि भारत के प्राचीन काल पर लिखा इतिहास आर्य क्षत्रिय तथा ब्राह्मणों का इतिहास बनाकर लिखा गया है,उसके बाद का राजपूतों का इतिहास भी उच्च वर्ग का इतिहास ही कहा जा सकता है,तदुपरांत मुस्लि
म सम्राटों ,नवाबों का और अन्त में अंग्रेज लार्डो का इतिहास लिखा गया,मगर इस देश के मूल आदिवासी शूद्र तथा वणिकों का , जिनकी जनसंख्या देश की कुल जनसंख्या का 85 प्रतिशत है का इतिहास कभी लिखा ही नहीं गया इस प्रकार यह पुस्तक शूद्रों ( वणिक ) की उत्पत्ति व इतिहास पर लिखी गई प्रथम विश्व विशुद्ध रचना कही जा सकती है.
सन् 1856 ई .में मुल्तान - लाहौर रेलवे लाइन के 100 मील के हिस्से के निर्माण का कार्य करने वाली अंग्रेज कम्पनी ठेकेदार जैम्स विलियम वर्टल ने , निर्माण के लिए मिट्टी तथा ईंटें आदि हड़प्पा के ही खण्डहरों से प्राप्त किये ,काम करने वाले अंग्रेज अधिकारियों ने पाया वहां मिली मद्राएं ( सीलें ) ऐसी हैं जो उससे पहले कहीं नहीं देखी गई आखिर भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के महानिर्देशक जॉन मार्शल के निर्देशन में सन् 1920 - 21 में दयाराम साहनी ने खुदाई का काम आरम्भ कराया,तब तक 1826 में मेसन तथा सन् 1831 में कर्नल वर्नस द्वारा वर्णित गढ़ी ' तथा सन् 1857 में जनरल कनिंघम ' द्वारा वर्णित बहुत -सी इमारतों का नामों -निशान भी शेष न बचा था,सारी ईंटें लूट ली गई थीं,सन् 1920 में भारत सरकार ने कानून बनाकर इस लूट पर रोक लगा दी.
हड़प्पा की प्रागैतिहासिक प्राचीनता का ज्ञान उस समय हुआ जब सन् 1922 में श्री राखलदास बनर्जी को मोहनजोदड़ो की खुदाई में इस शैली की वस्तुएं प्राप्त हुई तुलनात्मक समालोचना व अध्ययन ने सिद्ध कर दिया कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की सभ्यताएं न केवल परस्पर समान और एक रूप थीं बल्कि इनका सुमेरियन सभ्यता से भी घनिष्ठ सम्बन्ध था,सन् 1926 से 1933 तक श्री माधोस्वरूप वत्स तथा काशीनाथ दीक्षित ने उत्खनन का काम कराया ,मैके महोदय ने भी इस महान कार्य में हाथ बंटाया अब तक पुरातत्वीय खुदाई ने सिन्धु -घाटी सभ्यता के क्षेत्र को बहुत ही विस्तृत प्रमाणित कर दिया है,यह पूर्व में सहारनपुर जिले में बहादुराबाद ,बुलन्दशहर में भाटपुर तथा मानपुर,बनारस जिले में इलाहाबाद के निकट कौसाम्बी तक फैली थी,दक्षिण पूर्व में सौराष्ट्र तथा गुजरात में सूरत तक फैली थी जहां साबरमती घाटी में लोथल के अवशेष मिले हैं तथा नर्मदा के किनारे मेहगांव ,रेसोड ,रोजाडी तथा यादर नदी पर अडकाट,
समुद्र के किनारे पर रंगपुर तथा सोमनाथ पत्तन मिले हैं,पश्चिम में मकरान के किनारे तथा सोनमियानी के निकट वालाकोट , पासनी के निकट सोनकाकोह तथा अरब सागर के किनारे सतकानजेनदोर ,उत्तर में रोपड़ से लेकर सारे सप्तसिन्धु प्रदेश में फैली थी,पुरातत्वविद् डॉ .एच . पी .फ्रेंक्फर्ट के अनुसार ' उन्हें अफगानिस्तान के उत्तर पश्चिमी आंचल में सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेष मिले हैं,वे अवशेष स्थल शुर्तगई कस्बा तरबर प्रान्त में स्थित हैं जो पाकिस्तानी सीमांत से लगभग 800 कि .मी .दूर है यहां हुई खुदाई में हड़प्पा काल के एक नगर के अवशेष मिले हैं.
उपलब्ध वस्तुएं 1500 -2500 ई .पू .की हैं,डॉ.फ्रेंक्फर्ट ने यह भी कहा है कि आधुनिक पाकिस्तान इस सभ्यता का केन्द्र बिन्दु था तथा भौगोलिक दृष्टि से यह मिस्री सभ्यता से चौगुनी बड़ी थी,इस प्रकार यह महान सभ्यता उत्तर में रूसी सीमांत से लेकर दक्षिण पूर्व में बम्बई तक फैली थी,' खोदे गए स्थान में मुख्य हैं " - अलीमुराद , अमरी ,वालाकोट ,चन्हुदाड़ो , डावरकोट ,डेरा -वार ,कोट - डिज्जियां ,गाजीशाह ,हड़प्पा , काली बंगा ,कोटला -निहंग , लोथल ,लोहड़ी ,मोहनजोदड़ो , रोपड़ ,सीखरी सोनकाकोह , सतकानजेनदौर ,थाना बुलीखान , त्रिखान वाला डेरा ,आलमगीर , कौशाम्बी आदि,अब तक भारतीय पुरातत्व विभाग के डायरेक्टर जे . पी .जोशी के अनुसार लगभग 500 स्थानों की खुदाई भारतीय क्षेत्र में हो चुकी है तथा उससे कुछ कम ही संख्या है पाकिस्तान के क्षेत्र में ( वहां से ठीक आंकडे प्राप्त नहीं हुए भूमि से 50 - 60 फुट तक ऊंचे मिट्टी के विशाल चबूतरों पर बसे अधिकतर शहरों की किलेबंदी ,नगर योजना , पक्के मकान ,सीधी एक दूसरी को समकोण पर काटती हुई सड़कें व गलियां ,ढकी हुई नालियां ' ( Sewerage System ) इंग्लिश प्रकार की सीट वाले शौचालय ,हर घर में स्नानघर व कुएं इस सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता थी,काली बंगा में प्राप्त स्नानघरों तथा कमरों में लगी टायल की शान " , लोथल के बन्दरगाह में जल - नियन्त्रक व्यवस्था ( Water Locking System ) को देखकर दांतों तले उंगली दबानी पड़ती है,भारत में नगर -योजना , जल -निकास की आधुनिक व्यवस्था ( Sewerage System ) फ्लश व्यवस्था वाले शौचालयों का अभी कुछ बड़े शहरों को छोड़कर स्वतन्त्रता के बाद ही आरम्भ हुआ है,अभी तक छोटों की तो बात ही दूर ,बड़े - बड़े शहर भी ऐसी उत्तम वैज्ञानि क व्यवस्थाओं से रहित हैं,बड़े ही आश्चर्य की बात है कि लगभग इसी प्रकार की सुविधाएं आज से 4 - 5 हजार वर्ष पूर्व सिन्धु देश के साधारण जन को भी उपलब्ध थीं ऋग्वेद के अनुसार वहां के निवासी बहुत ही ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जीते थे,उनकी नारियां दूध से स्नान करती थीं,डी .डी .कौसम्बी लिखते हैं - ' इतने समय पूर्व इतना शहरी संगठन और शहरों में बुद्धिमत्तापूर्ण नगर योजना के उदाहरण और कहीं नहीं मिलते मिस्री शहर बनावट के हिसाब से फरोह राजाओं की पर्वत जैसी ऊंची समाधियों तथा मन्दिरों की तुलना में कुछ भी नहीं थे सुमेरियन ,अकाद तथा बेबीलोन के शहर भी लगभग सिन्धु -घाटी की तरह पक्की ईंटों के बने
थे,मगर वे नियोजित नहीं थे केवल विकसित हुए थे,( बाहरी दीवारें भद्दी थीं अधिकतर कच्ची ईंटों की थीं ),इससे साफ सिद्ध हो जाता है कि सिन्धु देश में केन्द्रीय सत्ता को साधारण शहरियों तथा जनता के हित का पूर्ण ध्यान था, सम्भवतः वहां की शासन व्यवस्था जनकल्याणकारी रही थी,अगर यह काम स्थानीय शहरी प्रबन्धक समितियों का होता तो कुछ ही शहरों तक ऐसी सुविधाएं सीमित रहतीं ,शत -प्रतिशत शहरों तक नहीं-
सिंधुघाटी सभ्यता के सृजनकर्ता शूद्र और वणिक-8-9-10.
जय भीम नमो: बुध्दाय जय भीम नमो: बुध्दाय
बी.एल. बौद्ध
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