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बाबा साहब की अस्थियां आगरा में कब रखी गई | बाबा साहब की हस्तियां आगरा में किसके द्वारा रखी गई

 

 बाबा साहब की अस्थियां आगरा में : 13 फरवरी....

  आगरा के पूर्वोदय चक्कीपाट बुद्ध विहार में रखी है बाबा साहेब की अस्थियां..

   13.2.1957 को बाबासाहेब के पुत्र यशवंत राव अंबेडकर द्वारा उनकी अस्थियां आगरा लाई गईं और पूर्वोदय चक्कीपाट बुद्ध विहार में स्थापित की गयी है। हर वर्ष छह दिसम्बर को डॉ. अंबेडकर के महापरिनिवार्ण दिवस पर ये अस्थियां जनता के दर्शनार्थ बुद्ध विहार में रखी जाती हैं।




      पूर्वोदय चक्कीपाट बुद्ध विहार की ज़मीन रक्षा विभाग की है और वह इस ऐतिहासिक बौद्ध विहार को हटाने के लिए बार बार कहता है। भदंत ज्ञान रत्न महाथेरा भारत सरकार से अपील करते हुए कहते है की इस ज़मीन को रक्षा विभाग से लेकर हमे दिया जाये ताकि हम बाबा साहेब की याद में भव्य स्मारक का निर्माण करा सके। विहार के हालत अभी खस्ता है।

   18.3.1956 को रामलीला मैदान, आगरा में सभा करने के बाद बाबा साहब ने पूर्वोदय चक्कीपाट में तथागत बुद्ध की प्रतिमा अपने हाथों से स्थापित की जो आज भी पूर्वोदय बुद्ध विहार में देखी जा सकती है।

     जुलाई 1957 को बौद्ध भिक्षु कौडिन्य ने आगरा आकर विशाल बुद्ध विहार का निर्माण कराया। 1967 में इसकी देखभाल के लिए बुद्ध विहार प्रबंध समिति बनाई गई, जो वर्तमान में भी इसकी देखरेख का जिम्मा संभाल रही है।


आगरा में पड़ी थी धम्मचक्र परिवर्तन की नींव....

   डॉ. अम्बेडकर ने 18.3.1956 को रामलीला मैदान में लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा था- ‘अगर मैं आगरा के लोगों की भावनाओं को पहले समझ लेता तो बहुत पहले ही बौद्ध धम्म ग्रहण कर लेता लेकिन अभी भी देर नहीं हुई है। इस छुआछूत और जातिवाद के खात्मे के लिए बौद्ध धम्म ग्रहण करूंगा…..’ आगरा से जाने के बाद उन्होंने नागपुर (महाराष्ट्र) में बौद्ध धम्म ग्रहण कर लिया। उन्होंने धर्म परिवर्तन की नींव आगरा में डाली थी।

     अछूतों के मसीहा डॉ. अंबेडकर की नजर में आगरा बहुत अहम था। वह मानते थे कि पंजाब, महाराष्ट्र के बाद आगरा अछूतों का सबसे बड़ा गढ़ है। पहली बार आगरा आगमन में ही डॉ. अंबेडकर ने भांप लिया था कि आगरा अछूत आन्दोलन में मील का पत्थर साबित होगा।

    आगरा में अपने ऐतिहासिक भाषण में बौद्ध धम्म को ग्रहण करने की इच्छा जताते डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि मैं जिस धम्म को आपको दे रहा हूँ, उसका आधारा बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय है। इसमें आत्मा परमात्मा का बखेड़ा नहीं है, न ही देवी देवता का झगड़ा है, इसमें मानव मात्र का कल्याण है। इसमें समानता, भाईचारा, न्याय और मानवता की सेवा भावना भरी हुई है। इसका आधार असमानता नहीं है। बुद्ध का धम्म इसी भारत की पवित्र भूमि का है।

   पढ़े-लिखे लोगों ने दिया धोखा.........

    डॉ. अंबेडकर के मन एक वेदना थी जो आगरा में बाहर निकलकर आई। उन्होंने रामलीला मैदान में अपना गुस्सा व्यक्त करते हुए कहा कि मैंने लोगों को पढ़ने-लिखने का अधिकार दिलाया। पढ़-लिखकर यह मेरा हाथ बंटाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मैं देख रहा हूं कि मेरे चारों तरफ पढ़े लिखे क्लर्कों की भीड़ इकट्ठी हो गई है, जो सिर्फ अपना पेट पालने में लगे हुए हैं। उन्होंने कहा था कि जिस समाज में एक आईएएस, दस डॉक्टर और बीस वकील होंगे, तो वह समाज खुद ब खुद सुधर जाएगा। मैंने आशा की थी कि मेरे अछूत शिक्षित, अपने दबे कुचले भाइयों की सेवा करेंगे पर मुझे यहां बाबुओं की भीड़ देखकर निराशा हुई है। लेकिन आज जब आप ऊंची नौकरी पर जाएं तो अपने भाइयों को न भूलें।


    बम्बू को रखें मजबूत.........

      डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि मैंने संविधान का निर्माण कर पूरे देश की एकता तथा अखंडता को बनाए रखने का काम किया है। आप सभी अपने अधिकारों के लिए संघर्षरत रहें। मैं लाठी लेकर आपके साथ सबसे आगे चलूंगा। उन्होंने समाज के कार्यकर्ताओं को झकझोरते हुए कहा कि इस समाज रूपी तम्बू में बम्बू का काम कर रहा हूं। अगर यह बम्बू गिर गया तो तम्बू की स्थिति स्वंय बिगड़ जाएगी इसलिए बम्बू को मजबूत बनाए रखना बहुत जरूरी है। 

     उन्होंने कहा था कि राजनीति में आपके हिस्सा न लेने का सबसे दंड यह कि अयोग्य व्यक्ति आप पर शासन करेंगे।

जय भीम नमो: बुध्दाय  



बी.एल. बौद्ध

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