भारत में प्रथम बालिका विद्यालय : 1 जनवरी 1848
1जनवरी 1848 के दिन ही जोतिबा फुले, सावित्री बाई और फातिमा शेख ने भारत के अंदर बेटियों और महिलाओं को शिक्षित करने के लिए पहली पाठशाला तात्याभाई भिड़े बाड़ा, बुधवारपेठ पुणे, महाराष्ट्र में खोली थी।
इस स्कूल में छह छात्राओं ने दाखिला लिया जिनकी आयु चार से छह के बीच थी। इनके नाम अन्नपूर्णा जोशी, सुमती मोकाशी, दुर्गा देशमुख, माधवी थत्ते, सोनू पवार और जानी करडिले थे। इन छह छात्राओं की कक्षा के बाद सावित्री के घर घर जाकर अपनी बच्चियों को पढाने का आह्वान करने का फल यह निकला कि पहले स्कूल में ही इतनी छात्राएं हो गई कि एक और अध्यापक नियुक्त करने की नौबत आ गई । ऐसे समय विष्णुपंत थत्ते ने मानवता के नाते मुफ्त में पढाना स्वीकार कर विद्यालय की प्रगति में अपना योगदान दिया।
लोगों की गालियाँ, बदतमीजी, बहिष्कार, सामाजिक प्रताड़ना को सहकर भारत की इस प्रथम शिक्षिका ने इस महादेश में बहुस्तरीय अमानवीय परम्पराओं और असमानता के विरुद्ध शिक्षा की अलख जगाकर जो कार्य किया है, वह इतिहास में विलक्षण और सर्वाधिक महान कार्यों में से एक है।
कितने लोग हैं खासकर शिक्षित महिलाएं जिन्हें महान शिक्षिका सावित्रीबाई का यह योगदान पता है ? उन्हें यह समझना चाहिए कि आज उनकी इस प्रगति जिसमें राष्ट्रपति पद सहित सभी मुख्य पदों पर महिलाओं का पहुंचना है, उन सबका आधार सावित्रीबाई है।
आधुनिक भारत में महिला सशक्तिकरण का द्वार खोलने वाली और बहुजन, स्त्रियों को शिक्षा के अधिकार के लिए संघर्ष करने वाली ज्ञान की वास्तविक प्रतीक सावित्रीबाई को याद करें। ज्ञान की और स्त्री स्वतंत्रता की हत्या करने वाली पुरानी काल्पनिक और मिथकीय देवियों को अब भूल जाइए।
सभी भारतीयों को बालिका विद्यालय दिवस की और नए वर्ष की मंगलकामनाएं।
बी.एल. बौद्ध
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