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आजादी का आंदोलन क्या वास्तव में आजादी का आंदोलन था- सन 1857 के विद्रोह का सत्य

 -आजादी का आंदोलन क्या वास्तव में आजादी का आंदोलन था- सन 1857 के विद्रोह का सत्य...

1857 के विद्रोह को जब सन 1861 में अंग्रेजों ने महसूस किया कि भारतीय समाज में एक बड़ा तबका उनके खिलाफ लड़ा है,तो वे उन विद्रोहियों की सूची बनाने में लग गए,उनकी प्रवृत्तियों को जाननें और समझने के लिए औपनिवेशिक निर्धारण परियोजना शुरू की गई,जिसके अंतर्गत जनगणना एवम गजेटियर  का निर्माण हुआ,जिसके आधार पर इन जातियों को नियंत्रित करने के लिए अनेक कानून बनाये गए,इस परियोजना का एक असर यह हुआ कि अब जातीय स्मृतियां निश्चित हो गयीं,वे एक बार लिखित होकर छप गयीं,

क्रिमिनल ट्राई पैक्ट इन्हीं प्रक्रियाओं का परिणाम था,जिसके तहत 198 दलित जातियों को चिन्हित किया गया,इन्हें तीन नाम दिए गए,इन्हें एक्स क्रिमिनल ट्राइब्स,डिनोटिफाइड ट्राइब्स,नोमोडिक ट्राइब्स कहा गया,सन 1860 में इसे भारतीय दण्ड संहिता में बदल दिया गया.

 सन 1857 के संघर्ष के बाद जहां स्वयं कथित ऊंची जातियों के लोग राय साहब,राय जमींदार,महाराजा,जागीरदार आदि की उपाधि लेने में मस्त थे,वहीं दलितों के ऊपर उपरोक्त बनाया गया क्रिमिनल ट्राइब्स ऐक्ट लगाया जा रहा था,यह ऐक्ट औपनिवेशिक इतिहास के विभिन्न कालखण्डों में लगाया गया,जो इस प्रकार है,सन 1871,1896,1901,1902,1909,1911,1913,1914 तथा 1924 यहाँ यह जानना बहुत रोचक है कि सन 1857 के तुरंत बाद क्रिमिनल ऐक्ट बनाने और इन दलित जातियों को चिन्हित करनें की आखिर क्या जरूरत पड़ गयी,दरअसल यह भारतीय बहुजन मुलनिवाशियों के खिलाफ बहुत बड़ी साजिस थी,वस्तुतः सन 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजी शासन नें इसे अपनें प्रशासन की खामी के रूप में देखा,तथा भारतीय समाज नें इस विद्रोह से सबक लेकर इसे नियंत्रित करनें के लिए नई रणनीति बनाई,तथा उन्हें आपराधिक जाति बना दिया,जो उनके प्रशासन के लिए चुनौती थे,जो औपनिवेशिक नियमों को नहीं मानते थे,और उन्हें बार बार तोड़ते थे.

 यह सन1857 का विद्रोह कोई सेनाओं,सैनिकों और राजाओं का विद्रोह नहीं था,बल्कि इस विद्रोह में बड़े पैमानें पर आम नागरिक किसानों ने भाग लिया था,जिन गांवों के सैनिक जिनकी संख्या लाखों में थी शहीद हुए थे,गांव के गांव इस विद्रोह से जुड़ गए थे,इस विद्रोह में सब के सब निचली जातियों के साहसी सैनिक नुमा लोग थे,क्योंकि विद्रोह की चिंगारी का मूल कारण था मंगल पांडे द्वारा मातादीन भंगी को पानी पीने के लिए लोटा मांगना,जिसे बाद में कारतूसों में गाय की चर्बी से जोड़ दिया गया क्योंकि मंगल पांडे को सैनिक विद्रोह का मुखिया बताना था,जबकि विद्रोह की चिंगारी कारतूसों में लगी चर्बी से नहीं बल्कि मातादीन भंगी द्वारा मंगल पाण्डे से पानी पीने के लिए लोटे का मांगा जाना था,क्योंकि 18वीं सदी में किसी भंगी द्वारा एक ब्राम्हण से लोटा मांगा जाना ब्राम्हणवाद के खिलाफ एक बहुत बड़ा विद्रोह था,

जिसकी इजाजत मनुस्मृति में कतई नहीं थी बल्कि यह एक भयंकर अपराध था जिसके खिलाफ कठोर सजा का भी  प्रावधान था,इस तरह सन 1857 का विद्रोह सैनिक विद्रोह न होकर ब्राम्हणवाद बनाम जातिवाद का एक आम शोषित भारतवासी का विद्रोह था,इस तरह सन 1857 के विद्रोह के हीरो मातादीन भंगी थे न कि मंगल कोई पाण्डे-

   आजादी का आंदोलन क्या वास्तव में आजादी का आंदोलन था-  पृष्ठ-57-58.

  बी.एल. बौद्ध


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